मंगलवार, 28 सितंबर 2010

कैसे अभिवावक हैं आप। सफलता के मायने क्या होते हैं

दैनिक भास्कर से साभार 


दैनिक भास्कर में एक लेख छपा प्रीतिश नंदी जी का । उसे मैंने अपनी बिटिया को भेजा । उसका जवाब पढ़िये  ।

Dear Papa

I think you are a very successful father. I am what I am because of
you.I am happy with the choices that I have made in life and you were
and still are supportive of everything. I have also learned that money
isn't everything, its people you care for, your family and your
friends who are important :)

Love

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

इस देश में डाक्टर कम क्यों हैं ?

साठ साल से ज्यादा समय तक जनता को बेवकूफ बनाने के बाद शायद अब कुछ अक्ल सरकार को आ रही है लेकिन सोच वही पुरानी है । 
जब भी यह बात होती थी की गाँव में डाक्टर नहीं हैं तो मंत्री जी यही आश्वाशन ही देते रहे की हम जरूर भेजेंगे । इनसे किसी ने यह नहीं पूछा कहाँ से लाएँगे, जब शहरों में भी कमी है तो गाँव के लिए कहाँ से लाएँगे ? 
सबसे पहले तो अपने देश की जरूरत के अनुसार कोई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति जैसी की पड़ोसियों ने बनाई(चीन, बंगला देश, पाकिस्तान, श्री लंका) वैसा किसी ने करने की नही सोची । अंग्रेजों के द्वारा छोडी हुई व्यवस्था में कुछ परिवर्तन करके, लोगों का इस शिक्षा और ज्ञान को प्राप्त के रास्ते में झूठे , आडम्बरपूर्ण मानक बनाकर रोड़े ही अटकाये  गये । 
इस देश में बिखरी हुई युवा शक्ति को अभी तक वंचित किया जा रहा है, अपना हक़ पाने के लिए । इतने बड़े ज्ञान के भंडार को वंचित किया जाता रहा इस शिक्षा को प्राप्त करने से । हर वर्ष लाखों विद्यार्थी डाक्टर बनने के लिए प्रवेश परीक्षाओं में भाग लेते हैं कुछ हजार सीटों के लिए !!
इस देश के अकूत युवा बुद्धि को वंचित रखा गया , उचित ज्ञान प्राप्त करने से । आज यह स्थिति आ खड़ी हुई है की कई विद्यालयों में जीव विज्ञान का विषय ही बंद कर दिया गया है उचित मात्रा में विद्यार्थी नहीं मिलने के कारण ।
क्यों हुआ ऐसा । पहला कारण तो यह रहा की दंभ ,की इस क्षेत्र में ज्यादा लोग न आयें और बाद में नेताओं के कॉलेज जो बहुत बड़े केंद्र बन गए पैसा उगाहने के । 
देखते हैं क्या रुकावटें खड़ी की गयी इस राह में । सबसे पहले तो आरएमपी/एलएमपी को बंद किया गया इसमें चिकित्सा शिक्षकों का बड़ा हाथ था । पहले कोई व्यक्ति कुछ वर्षों तक किसी चिकित्सक के साथ काम करके , उसकी अनुषंशा से चिकित्सक बन सकता था । इसके बंद होने और मेडिकल कॉलेज में सीट कम होने से अभाव की स्थिति पैदा हुई। जब भी कोई अभाव की स्थिति पैदा होती है या की जाती है तो मौकापरस्त लोग लग जाते हैं इसका अपने हक़ में फायदा उठाने में । सरकार ने नए संस्थान खोलने कम कर दिये लेकिन सत्ता में बैठे नेताओं ने अपनी दुकान खोल ली । दो प्रमुख आवश्यकताएँ  हैं किसी मेडिकल कॉलेज को खोलने के लिए  एक तो अधोसरचना जैसे जमीन , उपकरण इत्यादि जिसे कोई धनी व्यक्ति या संस्थान ही जुटा सकते हैं । यहाँ तक भी संभव है । असली रुकावट खड़ी होती है शिक्षकों के मापदंड से । सरकारें अपने मेडिकल कॉलेज में नए पद सृजन नहीं करती रही  क्योंकि अगर आंकड़े निकाले जाएँ  तो इस देश में स्वास्थ्य और शिक्षा को सबसे निम्न श्रेणी में रखा गया । इसका सबसे बड़ा उदाहरण है इन्हे  मध्यवर्ती सूची में रखना, याने धोबी का कुत्ता न घर का ना घाट  का (श्वान प्रजाति से क्षमा याचना के साथ)।  शिक्षकों के माप दंड पर भी एक नजर, त्रिस्तरीय, व्याख्याता, सहायक  प्राध्यापक , प्राध्यापक । व्याख्याता - किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से उपयुक्त स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त (बहुत  सारे कॉलेज को  इसे प्राप्त करने में सालों 20-25 तक लग जाते हैं) सहायक  प्राध्यापक - व्याख्याता के रूप में 8 वर्ष तक कार्य,   प्राध्यापक - सहायक  प्राध्यापक के रूप  में 4-6 वर्ष का अनुभव । साथ ही इनमें कई और पुछल्ले जोड़े गए जैसे हर स्तर से आगे जाने के लिए तथाकथित शोधकार्य और उसका किसी आधिकारिक पत्रिका में प्रकाशन ?? ये पत्रिकाएँ पूरे देश के लोगों के लेख प्रकाशित करती हैं, उनके अपने नियम और रुकावटें होती हैं । 
ये सारे नियम कायदे केवल भ्र्श्टाचार को बढ़ावा देते रहे । सरकार ने एक और नया कदम उठाया सविदा नियुक्ति याने ठेके पे काम लेना और वो भी आधी या उससे भी कम मजदूरी देना , उच्चतम शिक्षा प्राप्त लोगों के शोषण का इससे बडा उदाहरण कहीं और नहीं मिल सकता । एक डाक्टर को एक विधायक या सांसद से कम तंख्वाह और सुविधा मिलती है । 
यहाँ एक और बेईमानी न जाने कबसे चली आ रही है । इंजीन्यरिंग कॉलेज में पहले 11वीं पास करने के बाद 5 वर्षों का कोर्स था , 12वीं कक्षा के आने से यह कोर्स 4 वर्ष का हो गया । मेडिकल में प्रवेश के लिए पहले 11+1(कॉलेज में ) और 5 1/2 साल का कोर्स था जो 12 वीं कक्षा आने के बाद भी 5 1/2 वर्षों का है । इसका मतलब यह है की एक प्रारम्भिक डाक्टर बनने में 17 1/2 वर्ष लगते हैं जबकि इंजीनियर बनने में 16 वर्ष । यह कम से कम एक साल का नुकसान है चिकित्सा शिक्षा में ।
सरकार के एक आदेश से कितना परिवर्तन होता है इसका एक उदाहरण - चिकित्स शिक्षा में पहले एक स्नातकोत्तर शिक्षक(व्याख्याता 5 वर्ष के अनुभव के बाद)  के पीछे एक विद्यार्थी को प्रवेश मिलता था अब इसे दुगुना करने से पूरे देश में सीटें दुगनी हो जाएंगी ।
मेडिकल कौंसिल ने कुछ नयी सलाह दी है सरकार को !! कहा जाता है की एमसीआई स्वतंत्र संस्था है लेकिन उसे भी सरकार से संस्तुति लेनी पड़ती है ?




Intention to produce more doctors, prevent poaching of experienced teachers

To overcome the shortage of medical practitioners, the Medical Council of India (MCI) has recommended enhancing the retirement age of government medical professionals to 70 years from the existing 65 years. It has also suggested relaxations in the land requirement for setting up new medical colleges. 

Announcing this at a press conference here on Saturday, S.K. Sarin, Chairman of the Board of Governors of the MCI, said enhancing the retirement age of government medical professionals would help in producing more MBBS doctors and prevent private medical colleges from poaching on experienced and talented teachers. 

In another important recommendation made to the Union Health and Family Ministry, the MCI has said that the land requirement for setting up a new medical college should be reduced to 10 acres instead of the present 20 acres in urban areas, but within a 5-km radius. In difficult areas like hilly areas, tribal areas and the North East region, the land can be taken up at two places within a 10-km radius for setting up a hospital and medical colleges so that students are able to visit the patients in the hospital. 

The government had earlier relaxed the land norms from 25 acres to 20 acres with permission to take land in two pieces in difficult areas and densely populated cities about a year ago due to non-availability of large chunks of land. Similarly, the retirement age of Central government doctorswas also increased to 65 years from 60 years. The Government medical colleges had also been allowed to increase the number of under-graduate seats but without compromising on the quality of education. 

The MCI too, has recommended reducing the student bed ratio from 1:8 to 1:5, meaning that a 1,500-bedded hospital could have 250 undergraduate students. 


यहाँ मैं एक बहुत अच्छी व्यवस्था थी, मुंबई में जिसे सरकारी प्रभाव ने नष्ट कर दिया । मुंबई के सारे बड़े निजी चिकित्सक जो न केवल देश बल्कि अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं अपनी निशुल्क सेवा सप्ताह में एक दिन सरकारी मेडिकल कॉलेज को उपलब्ध कराते थे । मरीजों की जांच करना, पढाना और ऑपरेशन तक भी निशुल्क करना । लेकिन हमारी व्यवस्था और अहंकार ने इसे समाप्त कर दिया !!


मैं ऊपर दिये विचार से एक बात पर  थोड़ा असहमत हूँ ।वह है सेवानिवृत्ति पर,  पहला किसी शिक्षक की पढाने की कोई उम्र नहीं होती । यह हर जगह उम्र की रुकावट हमारे देश में ही है । विदेशों में 60 साल के ऊपर का भी व्यक्ति कोई शिक्षा प्राप्त कर सकता है तो हम ये अवरोध क्यों खड़ा कर रहे हैं । इसका दूसरा पहलू यह भी है की जब तक कोई पद खाली नहीं होगा तो दूसरे को अवसर नहीं मिलेगा। एक उम्र जो भी सर्वमान्य हो निश्चित की जाए उसके बाद भी कोई काम करना चाहता है तो उसे एक सम्माननीय दरजा देते हुई उसकी सेवा शर्तें अलग बनाई जाएँ, न की पहले पड़ाव में  कदम रखते युवा को वंचित किया  जाए ।
और कई बातें हैं फिर कभी और ।
अपने विचार जरूर रखें क्योंकि यह एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है इस देश के भविष्य के लिए 

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

ये हिन्दी हिन्दी क्या है

आजकल चहु ओर हिन्दी हिन्दी के नाम से बरसात हो रही है । क्या है यह हिन्दी दिवस और पखवाड़ा ?
क्या कोई भी भाषा, किसी दिन या पखवाड़े की मोहताज है । ये महज एक राजनैतिक षडयंत्रों के सिलसिले का एक अंग है । दुनिया में कहीं भी कोई अँग्रेजी, चीनी, जर्मन या फ्रांसीसी दिवस मनाया जाता है, मेरी जानकारी में तो नहीं है । समय के साथ परिवर्तन हर वस्तु में होता है और भाषा भी उससे बच नहीं पाती । भाषा वही प्रचलित और प्रसारित होती है जो जन जन को समझ में आए । साहित्य की भाषा अलग होती है और सामान्य जन की अलग। इस देश में बहुत सी भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं । नेताओं का अगला शिकार ये कभी भी हो सकती हैं , कुछ क्षेत्रों में तो यह प्रारम्भ भी हो गया है। नीव तो तभी खुद गयी थी जब  अच्छी तरह से व्यवस्थित राज्यों को भाषायी आधार पर पुनर्गठित किया गया ।

छवि: सौजन्य गूगल

हिन्दी भाषियों को एक झुनझुना पकड़ा दिया गया है की हिन्दी राजभाषा है और सरकार उसके लिए बहुत प्रयासरत है की उसे राष्ट्रभाषा बना दिया जाए। क्या वाकई कोई भी राजनैतिक पार्टी, जो राष्ट्रिय स्तर की है इसे अपने चुनाव का मुद्दा बना सकती है ? इस देश की जनता बहुत ही झुनझुना प्रिय है । जनता पारंगत है झुनझुने  पकड़ने  में और नेता उन्हे पकड़ाने  में।

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

चिकित्सा से उत्पन्न चोट का सहायक सेवा संस्थान

हमारे देश में जहां अभी पूरी  तरह से चिकित्सा व्यवस्था भी उपलब्ध नहीं है क्या ऐसी कोई व्यवस्था हो सकती है ? हमारी सबसे बड़ी कमजोरी रही है हर बात की नकल करने की, आज यह हो गया है की किसकी नकल करें , इसलिए फैसले या तो लिए नहीं जाते या अनिश्चित काल के लिए विलंबित होते हैं। हमारे नीति निर्धारकों ने स्वास्थ्य और शिक्षा को न्यूनतम श्रेणी में रखा लंबे समय  तक और इसे बीच वाली श्रेणी में रखा याने तेरा माई बाप कौन  । सारी अव्यवस्थाओं का कारण है हमारी मध्यवर्ती सूची जिसे फूटबाल के तरह जनता झेल रही है ।