ज्यादा समय नही हुआ मुझे इस ब्लॉग की दुनिया में । आगमन हुआ काफी उत्साह और और शुभकामनाओं सहित । आज पता नही क्यों लगा इतने सक्षम लोग इतना कुछ लिख रहे हैं, हर क्षेत्र से , लेकिन हिन्दी ब्लॉग की पहुँच है कितने लोगों तक ? केवल कुछ हजार लोगों तक ! जिस भाषा को समझने बोलने वालों की संख्या अरबों में हैं उनमे हजारों से होगा क्या । क्या हम सिर्फ़ अपनी भावना कुछ मुट्ठी भर लोगों तक पहुँचा कर अपने उद्देश्य में सफल हैं या फिर ये एक सिर्फ़ भड़ास निकलने का माध्यम भर रह गया है । भड़ास निकालना भी एक अच्छी चीज है स्वास्थ्य के लिए इससे अन्दर का बवंडर कम होता है और शरीर और दिमाग स्वस्थ रहता है ।
कई लोगों के लिया यह अपनी प्रतिभा के प्रस्तुत करने का अच्छा माध्यम भी है । परन्तु ब्लॉग जगत का सबसे महत्वपूर्ण अंग मेरी समझ के अनुसार एक अच्छी सामाजिक और राजनैतिक सोच का निर्माण करना है । हिन्दी ब्लॉग में कुछ ऐसे गुण भी हैं जो अन्य भाषाओं में नही मिलेंगे लेकिन अंततोगत्वा संख्या बहुत महत्वपूर्ण है ।
अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के ब्लॉग से हम कोशों दूर हैं संख्या और विमर्श में । इसका एक कारण हमारा भावनात्मक होना भी हो सकता है । आज हिन्दी के जानकार लोगों का कंप्यूटर उपयोग कम नही है लेकिन इसे एक दिशा ग्रहण करने की आवश्यकता है .
15 टिप्पणियां:
जब देश गुलाम था तो कुछ ही लोग उठे थे, आजादी की लडाई लडने, फ़िर धीरे धीरे लोग उन के पीछे चलते रहे, ओर फ़िर इन कुत्तो को भगा कर हमने आजादी हासिल कर ली.
अगर आप अभी से हिम्मत हार जायेगे तो आगे क्या होगा, आप टिपण्णियो की परवाह ना करे, बस लिखे, जो मन मै आये लिखे हम सब की कोशिश एक दिन रंग जरुर लायेगी, सभी लोग सहित्य पढने ही नही आते ब्लांग पर यानि यहां सब कुछ मिलेगा तो सभी लोग धीरे धीरे आयेगे,
ओर फ़िर हिन्दी अपने मान सम्मान को ज्यादा पायेगी, हम सब की कोशिश से हिन्दी भी इस इन्टर्नेट पर छायेगी.
चलिये उदासी छोडॆ तो जितना लिख सकते है लिखे.
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
आपको पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
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चाँद, बादल और शाम | गुलाबी कोंपलें
कुछ और हो ना हो..अच्छे लोगों से मुलाकात और विचारो का आदान प्रदान होगा।
हिन्दी ब्लागिंग की शुरूआत ही देर से हुई है .. इसलिए पाठकों की संख्या भी देर से ही बढेगी .. हमें प्रयास जारी रखना होगा .. सकारात्मक विमर्श तो आवश्यक है ही।
vaah vaah !!
sahmat!!
आदरणीय महेश भैया,सहमत हूं आपसे।अभी बहुत समय तो नही हुआ है लेकिन वाकई इसकी गति बडी धीमी है।उम्मीद पे तो दुनिया टिकी है और यही उम्मीद कह रही है कि ज़ल्द ही इसका भी तेज़ी से प्रसार होगा और ये जितनी ज़ल्द और तेजी से होगा समाज के लिये अच्छी सोच रखने वालो के लिये बेहतर होगा।
आपकी बात से हम सहमत हैं. लेकिन इसे जारी रखना ही होगा
सोचिये गर कुछ नहीं लिखेगे तो हज़ार लोगो तक भी नहीं पहुंचेगे ......
आदरनीय महेश जी...
सादर अभिवादन. जब मैंने ब्लॉग्गिंग शुरू की था तो इसकी संख्य्हा अ एक हजार भी नहीं थी..आज लगभग दस हजार तक पहुँच गयी है...मैं मानता हूँ की यदि किसी भी अन्य भाषा से इसकी तुलना करेंगे तो ये निसंदेह बहुत ही कम लगे..मगर बहुत से मायनों में ये एक सकारात्मक स्थिति है...हाँ जहां तक इसे दिशा देने की बात है..तो इसमें मैं भी सहमत हूँ..मगर चूँकि इसका प्रवाह अनियंत्रित है..और दुःख की बात है की मैंने यहाँ कई वरिष्ठ लोगों को भी भटकते हुए पाया ..मगर यकीन रखें..सब कुछ अपने आप अपना मुकाम हासिल कर लेगा.....
महेश जी, आपकी चिंता जायज है। जब मैने लिखना शुरु किया था तो एक अक्षरग्राम नाम की साइट थी जहाँ किसी भी एक विषय पर सभी हिन्दी ब्लागर एक परिवार की तरह चर्चा करते थे। अब वह बन्द हो गया। वहाँ जो भी ब्लाग नये आते थे उनके लिये कहा जाता था कि ये नये ब्लाग है उनका उत्साहवर्धन करिये। सभी पुराने ब्लागर आगे बढकर नये ब्लागरो को परिवार मे शामिल कर लेते थे। उस समय ब्लागो और पाठको मे जबरद्स्त इजाफा हुआ। अब उत्साहवर्धन की सारी गतिविधियाँ एक मठाधीश तक रह गयी है। ये ब्लाग पुरुस्कार के जज बनते है और अपने चाटुकारो को रेवडी बाँटते है। जो इन्हे नमन करता है उनके ब्लाग को रेडियो कार्यक्रम वाले बुला लेते है। जब बडे अखबारो मे ब्लागो की चर्चा होती है तो इन्ही मठाधीश के चहेतो के ब्लागो का उल्लेख होता है। आप ही बताये रचना जी और नीलिमा जी के ब्लाग को कभी विविध भारती ने बुलाया है। ये मठाधीश की चाटुकारी नही करते। आप कितना भी अच्छा लिख ले ये आपकी ओर देखेंगे तक नही। दीपक भारतीय जी बिना किसी आशा के इतना अहम योगदान दे रहे है पर इस मठाधीश ने जानबूझकर हाशिये मे रखा है। अनूप शुक्ल, शाश्त्री जी, समीर लाल, संजय बेगाणी, मसिजीवि, ज्ञान दत्त, आलोक, मैथिलीजी जैसे महान लोग निस्वार्थ रुप मे हिन्दी की अलख जगाये है पर उस मठाधीश के चलते नये ब्लागरो को पर्याप्त उत्साह नही मिलता है और वे ब्लाग लिखना बन्द कर देते है।
यदि गूगल या हिन्दी को प्रोत्साहित करने वाले किसी सही हाथो मे ब्लाग जगत को बढाने का काम सौपे तो कुछ ही महिनो मे यह लाखो मे पहुँच सकती है।
मैं अकेला ही चला था मंजिल की चाह में
लोग जुड़ते गये कारवां बनता गया..
पचास बरस पहले कितने लोग रेडियो सुनते थे, कितने अखबार पढ़ते थे?
यहाँ भी बढ़ जाएंगे। तसल्ली रक्खें!
pahalee baat हिन्दी ब्लॉग का भविष्य उज्ज्वल है इसमे सन्देह नही हाँ बुद्धिजीविओं को इससे जोडने की ज़रूरत है
दूसरी बात ब्लोग पर स्तरीय साहित्य ही इसे श्रेश्ठ स्थान दिलवा सकता है इसके सामाजिक सरोकार होने चाहिये
तीसरी बात बेनामी जी यह मठाधीश कौन है हमे भी बतायें
aapki hindi language ke prati bhavnaon ki me respect karta hoon.
I have alsostrated bloging.Same question arise in my mind.There is no othger choice. Do we have any alternate?
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