बुधवार, 5 जून 2013

दिग्विजय सिंह और एन आई ऐ

दिग्विजय सिंह को क्या बयानबाजी से छूट दी गई है। समाचार पत्रों में खबर छपी है की सुरक्षा एजेंसिओं ने दरभा काण्ड से सम्बंधित बयानबाजी करने से राजनैतिक दलों को मना किया है .
लेकिन लगता है दिग्विजय को विशेष छूट मिली हुई है . एक तरफ तो वह कोई एन आई ऐ का पत्र दिखाते हुए दीखते हैं और साथ ही मीडिया को धमकाते हुए भी की प्रेस कौंसिल में रिपोर्ट कर देंगे  . एन आई ऐ का पत्र उन्हें किस हैसियत से प्राप्त हुआ यह भी एक जांच का मुद्दा है .
दिग्विजय जी समाचार पत्र में यह आया था कि एन आई ऐ के किसी  अधिकारी ने यह खबर दी है. कहीं एन आई ऐ को भी यह न सुनना पड़ जाये कि वह भी सरकार का तोता है .

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

कॉंग्रेस की यात्रा गांधी से अंबेडकर तक

पता नहीं अगर आज गांधी होते तो क्या करते। क्या सरकार उन्हे भी अनशन की इजाजत नहीं देती ? ऐसा माना जाता है की गांधी का और उनके अनशन का बड़ा योगदान है इस देश को आजादी दिलाने में । आज वही अनशन गैरकानूनी  हो गया इस देश के सविधान और कानून के अनुसार। बुजुर्गों ने बड़ी जल्दी भाँप लिया था और कहने लगे थे की इससे अच्छा तो अंग्रेजों का शासन था। अत्ब उस समय का युवा वर्ग उनकी बातें मज़ाक में उड़ा दिया करता था , आजादी के नशे में। क्या आज का युवा वर्ग भी उसी खुमारी में जी सकता है की हम स्वतंत्र हैं  ।
देश के सविधान को बनाने में शायद 80 लोगों का हाथ था लेकिन केवल अंबेडकर के नाम का दुरुपयोग कई दल कर रहे हैं। जिस बात का अंबेडकर ने सबसे ज्यादा विरोध किया उसी बात को उनके द्वारा निर्मित बताया जाने लगा। क्या सीबीआई इस महाषड्यंत्र की भी जांच करेगी। 

शनिवार, 19 मार्च 2011

सरकारी वेब साइटों का बुरा हाल

बड़े धूम धाम से सरकारी वेब साइटों का उदघाटन होता है । उसके बाद उन्हे देखने वाला कोई नहीं होता । न आपको कोई जवाब ईमेल से मिलता है । जागो जागो का नारा लगाने वाली सरकार खुद सोते रहती है ।
एक उदाहरण देखिये : रायपुर नगर निगम के वेब साइट में मुख्यमंत्री और महापौर का नाम गलत दिया है यहाँ तक की महापौर शब्द भी गलत लिखा है।


रविवार, 13 फ़रवरी 2011

सरकार, नक्सलवाद और बिचौलिये


अगर आप किसी बात का विरोध नहीं करते तो इसका अप्रत्यक्ष मतलब यही है की उस बात या विश्वास का आप समर्थन कर रहे हैं । यही अंतर है देशभक्ति और देशद्रोह में ।

इस देश की सबसे बड़ी विडंबना यही लगती है की इस नए माध्यम(ब्लॉग या बज) का उपयोग देश और जनकल्याण के लिए करने के बजाय और कुछ रूप में किया जा रहा है ।

हर जगह राजनीति नहीं होनी  चाहिये  लेकिन हो यही रहा है । इंसान की जान के सौदे हो रहे हैं और लोग या तो इन दुर्दांत घटनाओ का समर्थन कर रहे हैं या चुप हैं ।

इस देश में क्या कभी कोई क्रांति हो सकती है या हर बात में सौदेबाजी होगी

विनायक सेन पर एक विचार


सौजन्य : नवभारत , रायपुर 

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

वास्तव में हमारा चरित्र क्या है

इसे अन्यथा न लें

तिरिया चरित्रम पुरुषश्य भाग्यम
देवो न जानती .............

यह लोकोक्ति कहाँ से और कैसे उपजी इसके बारे में तो इतिहासकार ही बता सकते हैं ।

तुलसीदास भी कुछ भ्रम निर्मित कर गए ;
ढोंर गवार शूद्र पशु नारी ये सब तारण के अधिकारी । इसकी व्याख्या लोग अलग अलग करते हैं ।

अभी तक जो कहा गया वह इतिहास है

लेकिन वर्तमान में भी हम क्या कर रहे हैं

सबको मालूम है और ज़्यादातर लोग भ्रष्टाचार कर रहे हैं और बड़ी बड़ी संस्थाएं चुप बैठी हैं ।

इस व्यवस्था को जन्म देने के लिये क्या हम सब जिम्मेदार नहीं हैं ?

भय के बिना प्रीति नहीं होती - जब तक ऐसा कानून नहीं होगा जो भ्रष्टाचार को सबसे बड़े अपराध की श्रेणी में रखे , सब ऐसा ही चलता रहेगा ।

बूंद बूंद से घड़ा भरता है , घड़े को भरने से रोकने के लिए बूंद को रोकना  होगा ।

सबको पता है कहाँ से यह शुरू होता है और कहाँ खत्म ।

अब यह देश की जनता पर ही निर्भर करता है की वह अपने बारे में क्या चाहती है ।

स्कूली साक्षरता भले ही नहीं आई हो सरकारी हिसाबों में

इस देश की जनता अब सब समझती है ।

जय हिन्द