अबूझमाड़ बस्तर का वह क्षेत्र है जिसे आम आदमी के लिए ३० साल पहले बंद कर दिया गया था। कारण कई बताये गए लेकिन मुख्य मुद्दा इस क्षेत्र में रहने वालों की सभ्यता को दुनिया की बुरी नजरों से बचाना था । यह वही जगह है जो अपनी घोटुल परम्परा के लिए विश्व विख्यात है । इस परम्परा को ग़लत रूप से ज्यादा प्रचारित किया गया । प्रश्न ये है क्या इस व्यवस्था ने जिसने इन्हे बाकी दुनिया से काट दिया इनका क्या भला किया । बाकी लोग तो दूर रहे नक्सलियों ने इसे अपना गढ़ बना लिया । आज यह इलाका इनका मुख्य केन्द्र है बस्तर में ।
आज भी कुछ लोग इसे खोलने के निर्णय का विरोध कर रहे हैं , जाहिर है उनका क्या उद्देश्य है ।
प्रश्न ये है की क्या आदिवासियों को उनके जीवन दर्शन से दूर किया जाना चाहिए विकास के नाम पर या उन्हें भी पश्चिमी सभ्यता से जोड़ देना चाहिए । उन्हें बाहरी दुनिया से काटकर, बिना किसी सुरक्षा इन्तेजाम के कितना सही था ? इनके लिए तो एक तरफ़ कुआँ और दूसरी तरफ खाई वाली बात हो गई । आदिवासियों और अन्य पिछडे वर्गों के लिए मगरमच्छ के आंसू बहाने वाली पार्टियों के पास कोई जवाब है इसका .
5 टिप्पणियां:
अबूझमाड़ को आदिवासियों का म्यूज़ियम तो बना नही सके उल्टे इसे नक्स्लियो के सुरक्षित किले मे ज़रूर बदल दिया। हम लोग कल ही इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि एक सोची समझी साजिश के तह्त बस्तर के इस हिस्से को बाहरी दुनिया से काट कर रखा गया था।
गंभीर प्रश्न उठाया है आपने महेश जी। आपसे सहमत हूँ।
सब से पहले इसे बन्द ही नही करना चाहिये था, अगर सरकार को इन की इतनी ही चिंता थी तो ओर बी बहुत से सुरक्षित ढंग थे इस सभ्यता को सुरक्षित रखने के, ओर अब जब इन तीस सालो मे वहां सब कुछ बिगड गया तो अब क्या करे? यह जबाब भी वोही लोग दे जिन्होने यह सब किया.
धन्यवाद
पुसदकर जी ने सही कहा है. एक सोची समझी साजिश थी जिसके तहत अबूझ माड़ को बाहरी दुनिया से अलग थलग कर रखा गया था. नक्सलियों ने वैसे भी उन आदिम वासियों को पथभ्रष्ट तो कर ही दिया होगा. नारायणपुर का विवेकानंद आश्रम एक है जिसने उनके उत्थान के लिए बहुत कार्य किया है.
पूरी तरह सहमत हु आपसे ..अबूझमाड़ बस्तर को लेकर जो कुछ अभी तक हुआ है उससे सभ्य समाज का सर शर्म से झुकना ही चाहिए ..
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