अबूझमाड़ बस्तर का वह क्षेत्र है जिसे आम आदमी के लिए ३० साल पहले बंद कर दिया गया था। कारण कई बताये गए लेकिन मुख्य मुद्दा इस क्षेत्र में रहने वालों की सभ्यता को दुनिया की बुरी नजरों से बचाना था । यह वही जगह है जो अपनी घोटुल परम्परा के लिए विश्व विख्यात है । इस परम्परा को ग़लत रूप से ज्यादा प्रचारित किया गया । प्रश्न ये है क्या इस व्यवस्था ने जिसने इन्हे बाकी दुनिया से काट दिया इनका क्या भला किया । बाकी लोग तो दूर रहे नक्सलियों ने इसे अपना गढ़ बना लिया । आज यह इलाका इनका मुख्य केन्द्र है बस्तर में ।
आज भी कुछ लोग इसे खोलने के निर्णय का विरोध कर रहे हैं , जाहिर है उनका क्या उद्देश्य है ।
प्रश्न ये है की क्या आदिवासियों को उनके जीवन दर्शन से दूर किया जाना चाहिए विकास के नाम पर या उन्हें भी पश्चिमी सभ्यता से जोड़ देना चाहिए । उन्हें बाहरी दुनिया से काटकर, बिना किसी सुरक्षा इन्तेजाम के कितना सही था ? इनके लिए तो एक तरफ़ कुआँ और दूसरी तरफ खाई वाली बात हो गई । आदिवासियों और अन्य पिछडे वर्गों के लिए मगरमच्छ के आंसू बहाने वाली पार्टियों के पास कोई जवाब है इसका .