कॉमन वैल्थ याने जो आम संपत्ति थी एक साम्राज्य की उसका प्रतीक है राष्ट्रमंडलीय खेल. किसकी संपत्ति ब्रिटैन की, जिसपर वह आज तक काबीज है कहीं खुले रूप में कहीं क्षद्म रूप में . हमारे देश में यह मौजूद है क्षद्म र्रोप में क्योंकि आज भी हम उसी कानून व्यवस्था और नौकरशाही के सहारे देश चला रहे हैं जो अंग्रेजों ने अपने लिए बनाई थी .
80,000 करोड़ का खर्च किया जा रहा है इस आयोजन पर . कहीं किसीसे पूछने की जरूरत महसूस हुई जिनने यह पैसा अपनी मेहनत से जमा किया था सरकार के खजाने में ?
ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है इस देश में की पूछा जाए . मूठी भर लोग , राजनेता और अधिकारी फैसला करते हैं जनता के धन के बंदरबाँट कैसे होगी .
इस देश की 80 प्रतिशत जनता गरीब है . याने लगभग 96 करोड़ . इस पैसे को अगर इन गरीबों में बाँट दिया जाता तो इस देश की गरीबी दूर हो जाती . लेकिन ऐसा चाहता कौन है . समाजवाद के प्रवर्तक आज अपना मुह छुपा रहे होंगे कि उनके नाम पर डाकुओं की फ़ौज खडी है .
जिस देश में हर जगह नेता ही बसे हों वहाँ शुभम करोति कल्याणं की सोच ही बेमानी लगती है .
एक ठो डंडा पकड़ के नाचे हम
वही जो हमारे पीठ पे पड़ा था कभी
फिर भी है एक आशा क्योंकि आशा में ही जीवन है
8 टिप्पणियां:
aapko naman .......
bahut zaroori mudde par
sateek aalekh !
behatareen post !
कॉमन वैल्थ यानि गुलाम देश आप ने बिलकुल सही कहा, अब अगर भारत मै गरीब( जो कि गरीब नही है इस सरकार मै बेठे नेताओ की वझ से वो गरीब है) को भर पेट रोटी मिल जायेगी, ओर उस के बच्चे पढ लिख जायेगे तो.... गरीब को अकल आ जायेगी, ओर वो फ़िर इन हरामी नेताओ की बातो मै नही आयेगा, एक जाग्रुक नागरिक बन जाये गा, ओर यही बात नेता नही चहाते, ओर आम भारतिया को सिर्फ़ रोटी के चक्क्र्र मै ही डाले रहते है....
परंपरा का आधार गुलामी का ही है। और भी प्रतीक हैं उसके।
कॉमनवेल्थ गेम के बहाने आपने नेताओं की अच्छी खबर ली है।
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पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
pata nahi kab ubarenge iss gulami se .
bahut sahi baat
बिलकुल सही कह रहे है. इतने रुपए से तो कई छोटे छोटे सहर बस जाते. करोडो लोगो को रोजगार मिल जाता. सौर उर्जा पर खर्च करते तो लोगो को बहुत सस्ती बिजली मिल जाती.
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