बुधवार, 30 जून 2010

हे ब्लागवाणी तू छुपी है कहाँ.



हिमांशु मोहन जी के अनुरोध पर बज से ब्लाग पर 
ब्लागवाणी का अपडेट 18.06.2010 से बंद है . 24 से 29 तक शहर से बाहर रहने का बाद आज देखा की वही स्थिती बरकरार है .

हिन्दी वाले कुछ ज्यादा ही सेंटीयातें हैं 
चढ़ जाते हैं कभी टंकी पर कभी पहाड़ पर 
कभी नाले पर कभी पेड़ पर 
कभी रोको रोको मुझे मत जाने दो 
अब इसका असर समूह पर भी तो पड़ेगा 
बेचारी ब्लागवाणी भी इस वाइरस से ग्रस्त हो गयी 
बिना बताये माइके चली गयी 
अरे भाई गाना तो गाना था 
झूठ बोले कौवा काटे 
कौवा भी खुश होता किसी ने याद किया 
वरना केवल श्राद्ध में याद करते हैं 

हे निष्ठुर, देखो बेरहम, तुम्हारे प्रेमी कैसे तड़फ रहे हैं 
कहीं भी गई हो पता ठिकाना नहीं मालूम तो मोबाइल तो पास होगा 
24 घंटे में खबर नहीं आई तो पक्का समझो थाने में खबर लिखवाई 
तुम तो अभी नादान हो लेकिन इतनी तो समझदार हो 
की शरीफ़ घरों की बहू बेटियाँ थाने कचहरी के चक्कर में नहीं पड़ती 
कोई ऐसा वैसा चक्कर हो तो भी न घबराना 
फौरन से पेश्तर फुनिया घूमाना देश अब हमारा प्रगति कर रहा है . 
कुछ कोनो में पंचायतें अपना काम कर रही हैं उनका भी काम तमाम किया जाएगा 
कही इसमें अफ़ज़ल, कसाब , एंडेरसन का हाथ तो नहीं . 
घबराना नहीं मंत्रियों का दल है तैनात, तुम्हारी फरियाद जरूर सुनी जायेगी . 
मनमोहन जी ने संग्रहालय से जहांगीर का घंटा मंगवाया है .

5 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

हा हा हा ! अच्छा कटाक्ष है ।
लेकिन क्या हुआ , तू नहीं तो कोई और सही ।
कितनी खड़ी हैं राहों में ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लोग दीवानगी में पथराये हैं, इतने में तो निर्दयतम प्रेमिका भी मान जाती है ।

Udan Tashtari ने कहा…

घबरा नहीं रहे..फरियाद सुनवाई का इन्तजार करते करते अघा गये हैं, बस!

36solutions ने कहा…

हे निष्ठुर, देखो बेरहम, तुम्हारे प्रेमी कैसे तड़फ रहे हैं हम भी यहीं पुकार रहे हैं किन्‍तु पिछले दिनों कुछ विश्‍वस्‍त पोस्‍टों में प्रकाशित जानकारी के बाद यह स्‍पष्‍ट है कि ब्‍लागवाणी अब बंद हो गई है.

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी कहां कहा ढुढे इसे???कितनो का दिल दुखा गई , कितनो को दुखी बना गई