आजकल चहु ओर हिन्दी हिन्दी के नाम से बरसात हो रही है । क्या है यह हिन्दी दिवस और पखवाड़ा ?
क्या कोई भी भाषा, किसी दिन या पखवाड़े की मोहताज है । ये महज एक राजनैतिक षडयंत्रों के सिलसिले का एक अंग है । दुनिया में कहीं भी कोई अँग्रेजी, चीनी, जर्मन या फ्रांसीसी दिवस मनाया जाता है, मेरी जानकारी में तो नहीं है । समय के साथ परिवर्तन हर वस्तु में होता है और भाषा भी उससे बच नहीं पाती । भाषा वही प्रचलित और प्रसारित होती है जो जन जन को समझ में आए । साहित्य की भाषा अलग होती है और सामान्य जन की अलग। इस देश में बहुत सी भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं । नेताओं का अगला शिकार ये कभी भी हो सकती हैं , कुछ क्षेत्रों में तो यह प्रारम्भ भी हो गया है। नीव तो तभी खुद गयी थी जब अच्छी तरह से व्यवस्थित राज्यों को भाषायी आधार पर पुनर्गठित किया गया ।
छवि: सौजन्य गूगल
हिन्दी भाषियों को एक झुनझुना पकड़ा दिया गया है की हिन्दी राजभाषा है और सरकार उसके लिए बहुत प्रयासरत है की उसे राष्ट्रभाषा बना दिया जाए। क्या वाकई कोई भी राजनैतिक पार्टी, जो राष्ट्रिय स्तर की है इसे अपने चुनाव का मुद्दा बना सकती है ? इस देश की जनता बहुत ही झुनझुना प्रिय है । जनता पारंगत है झुनझुने पकड़ने में और नेता उन्हे पकड़ाने में।
14 टिप्पणियां:
राजनीति पार्टियों के हाथ नही लगा है ये झुनझुना अभी तक .... इसलिए तो ऐसे हालात हैं हिन्दी के .....
दोनों बातें राजनीति के पाले में है.
आपके भाषा के समय के साथ बदलते स्वरूप के चिंतन से मैं भी सहमत हूं.
सहमत ...जरुरत दिवस मानाने की नहीं अपना बनाने की है.
सहमत ...जरुरत दिवस मानाने की नहीं अपना बनाने की है.
सहमत है जी आप की हर बात से
bilkul sateek..aapki baaton se sahamat hun.
इस बहाने कुछ तो हिंदी वालों का लाभ होगा :)
पखवाडा मनाने से तो हिंदी का विकास नहीं होने वाला । हिंदी का विकास तो आप और हम जैसे हिंदी ब्लोगर कर रहे हैं , जो सारे साल लिखते हैं । शुभकामनायें ।
हिन्दी दिवस की बधाईयाँ।
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
."दुनिया में कहीं भी कोई अँग्रेजी, चीनी, जर्मन या फ्रांसीसी दिवस मनाया जाता है,"...बहुत ही महत्वपूर्ण बात कह दी आपने...यह बस एक शोर के सिवा कुछ नहीं....हिंदी को बढाने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है
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महेश जी,
विरले ही होते हैं हिम्मतवाले । शायद कभी कोई इमानदार और निर्भीक व्यक्ति राजनीति में आएगा तो हिंदी के भी दिन फिरेंगे।
सुन्दर , सम्यक पोस्ट के लिए आभार।
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जिस गति से हिंदीभाषी राज्यों में भी दफ्तरों में अंग्रेजी का चलन बढा है,उसे देखते हुए,हिंदी पखवाड़ा साल में एकाधिक बार मनाया जाना ठीक होगा।
जिस गति से हिंदीभाषी राज्यों में भी दफ्तरों में अंग्रेजी का चलन बढा है,उसे देखते हुए,हिंदी पखवाड़ा साल में एकाधिक बार मनाया जाना ठीक होगा।
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