शनिवार, 2 मई 2009

जंगल जंगल बात चली है पता चला है

हे प्रियजनों
नमस्कार
लगता है अनामधारी टिप्पणीकर्ताओं ने एक नया रूप धरा है । अब छद्म नाम की जगह एक वास्तविक से लगते नाम को ब्लॉगर में रजिस्टर करके प्रतिक्रिया व्यक्त करने का । अपना नाम संभाल के रखियेगा कोई चुरा न ले ।
आप ही या कोई तकनीकी व्यक्ति ही सुझा सकता है इसका इलाज । वैसे ये एक मानसिक समस्या भी है , ऐसा क्या भय है की नाम छुपाओ , ग़लत नाम बताओ , फोटो छुपाओ , अपनी जगह चिडिया की फोटो लगा दो । इस संगणक के महाजाल ने न जाने कितनी नई विषमताओं को जन्म दिया है । कवि और लेखक तो अपना नाम बढ़ा कर तख्हल्लुस तक रख लेते हैं की उनकी अलग पहचान बने । ठीक है हर कोई कवि और लेखक तो नही ।

2 टिप्‍पणियां:

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

जी सही लिखा आपने नित रोज़ नयी समस्या कड़ी हो रही है..पर निदान भी है...

Anil Pusadkar ने कहा…

माडरेशन ही फ़िल्हाल एकमात्र उपाय है इनसे बचने का।