शुक्रवार, 15 मई 2009

मानवधिकार और नक्सलवाद

आज के अखबार में कल रायपुर में बिनायक सेन के समर्थन में एक रैली निकाली गई की ख़बर छापी अब शायद लोग ये न कह सकेंगे कि छत्तीसगढ़ के पत्रकार बिनायक सेन के विरूद्व हैं । इसमे कई नामचीन लोग शामिल हुए । इनमे से एक जे एन यू के प्रोफ़ेसर डॉक्टर मुख़र्जी भी थे । उनका कहना है "बिना हिंसा के आन्दोलन बेअसर "। अब मानवाधिकार के प्रवर्तकों के ये विचार है तो दुनिया का क्या होगा ? ये सारे लोग एक व्यक्ति के लिए जितना तन मन धन लगा रहे हैं उसमे न जाने कितने गरीबों का भला होता । लेकिन उन्हें इससे क्या मतलब । उन्हें तो अपनी एक सोची समझी मुहीम को आगे बढ़ाना है । मुख़र्जी साहब शायद बहुत सीधे व्यक्ति हैं जिनके मुह से ये सच निकल ही गया कि क्या सोच है उनके संगठन की। और कितना खून बहाना चाहते हैं आप लोग ? मुख्यमंत्री रमन सिंह के इस बयान को भी तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत किया गया जो उन्होंने कुछ दिन पहले दिया था " उन्हें खुशी होगी अगर बिनायक सेन को अदालत जमानत देती है "। उन्होंने कानूनी और मानवीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया लेकिन इसे यू टर्न करार दिया गया !
इस आन्दोलन के बारे में जब मैंने कुछ जानकारी ली तो पता चला , बिनायक सेन के नाम से वेब साईट में केवल समर्थक टिप्पणियां ही ली जाती हैं । एमनेस्टी ने अपने साईट में समर्थन जाहिर किया है लेकिन उन्होंने कुछ प्रश्नों का जवाब नही दिया । प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका लांसेट से जब ये पूछा गया कि उन्होंने किस आधार पर इस सन्दर्भ में लेख छापा तो उन्होंने एमनेस्टी का सन्दर्भ दिया , साथ ही उन्होंने ये भी पूछा कि क्या बिनायक सेन विचाराधीन कैदी हैं ? इन सब बातों से क्या जाहिर होता है ?
हमारी सरकार कब तक इन सबसे आँखे मूंदे रहेगी या किसी दल का इनको आतंरिक समर्थन है ?
हम इस देश को किस और ले जाना चाहते है, विकल्प हमारे आस पास ही हैं - पाकिस्तान, बांग्लादेश , नेपाल, चीन, म्यांमार या श्रीलंका । हमें अपना ये मिथक तोड़ना होगा कि हम बहुत बड़े देश हैं और कोई हमारा कुछ नही बिगाड़ सकता । घर का भेदी लंका ढाये, ये कहावत किसीने अपने पूर्ण अनुभव के बाद ही कही होगी ।
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिश्तां क्या होगा ................

3 टिप्‍पणियां:

kumar prashant ने कहा…

सही कहा है आपने ये मानवाधिकार वालों का चोचला मेरे समझ से बाहर है ये आतंकवादियों के मानवाधिकार की बात करतें है भारत में हजारों लोग भूखे सोते हैं उनके मानवाधिकार का क्या ?ये लोग सिर्फपेपर के पहले पन्ने पर आना चाहते है कैसे भी।

Anil Pusadkar ने कहा…

सच को जस का तस सामने रखने के लिये बधाई।ये चोचलेबाज़ अब बेनकाब हो रहे हैं। डा मुखर्जी का बयान इस बात का सबूत है कि वे लोग हिंसक नक्सलवाद का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन कर रहे हैं।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

इस खबर को मैने भी पढ़ा भाई साहब। बहुत ही आश्चर्य हुआ पढ़कर। लिखता हूं इस मुद्दे पर जल्द ही।