सोमवार, 18 मई 2009

ठहरिये आप रायपुर की सड़क पार कर रहे हैं

अगर आप रायपुर में रहते हैं तो ये आप जानते हैं कि पैदल चौराहे को पार करना युद्ध जीतने से कम नही है, अगर कभी आप ऐसा करते हैं तो। अगर आप वाहन में घूमते हैं तो कोई बात नही . अगर आप बाहर से हैं तो पूछेंगे क्यों ? इसमे कौन सी बड़ी बात है ! रायपुर में लगभग हर बड़े चौराहे पर यातायात के सिग्नल लगे हुए हैं इनमे पीली बत्ती का प्रावधान भी , किंतु ये पलक झपकते ही बदल जाती है । पदयात्री के लिए यहाँ न कोई सिग्नल है न कोई अन्य प्रावधान । तो होता क्या है रणबाकुरे और बांकुरी जब चाहे निकल पड़ते हैं सड़क पार करने , अपनी जान हथेली में लेकर । दूसरी ओर हरी बत्ती के इन्तेजार के बिना वाहनचालक पीली बत्ती होते ही पिल पड़ते हैं या उससे पहले भी समय और काल देखकर ।इस शहर में मानवधिकार आयोग भी है और संगठन भी लेकिन शायद ये इसका मामला नही बनता ।विदेशों में पदयात्री के लिए सम्मान भी और व्यवस्था भी है , हमारे देश में न जाने क्यों इतना उतावलापन है । जल्दी पहुँचने के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं यहाँ तक की लड़ने को भी । मेरे भाईओं हमारे देश में सेना में लोगों कि काफी जरूरत है, जबकि सब बेरोजगारी का रोना रोते रहते हैं । अगर जान देनी भी है तो देश के नाम पर दें , सड़क दुर्घटना में नही।सिंगापुर में कोई यातायात का सिपाही नही दिखाई देता लेकिन सेंट्रल कंट्रोल से पूरा शहर नियंत्रित रहता है , मजाल है कोई नियम तोड़ दे। पुलिस भी वहां सादी वर्दी में घूमती है ये देखने कि कोई कचरा तो नही फेक रहा है । हमारे पान प्रिय वहां बाकायदा पीक दान ले कर चलते हैं ।

7 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

मुझे तो सड़क पार करना और समर भूमि में लड़ना दोनों बराबर से लगते हैं। रायपुर आने से बचूँगी।
घुघूती बासूती

संगीता पुरी ने कहा…

नियमों के पालन करने से सुव्‍यवस्थित रहता है सब .. नहीं पालन किया जाए तो अव्‍यवस्‍था तो फैलेगी ही .. न समझनेवालों को क्‍या कहा जाए ?

बेनामी ने कहा…

सिन्हा जी,
आप केवल रायपुर शहर की ही दुहाई न दें, अन्य शहरों की व्यवस्था भी कोई बहुत अच्छी नहीं है। यह सच है कि रायपुर में लोग यातायात को ताक पर रखकर चलते हैं। जिस तेजी से रायपुर का विकास हुआ है, उससे दोगुनी तेजी से आबादी भी बढ़ी है। आयातित लोगों की संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है। ये लोग छत्तीसगढ़ की संस्कृति से खिलवाड़ भी कर रहे हैं। लोगों को संस्कृति के माध्यम से नाता जोड़कर उस पर विश्वासघात कर रहे हैं। असामाजिक तत्वों की सूची देखें, छत्तीसगढ़ के लोग कम ही मिलेंगे। वास्तव में यातायात इन्हीं से बिगड़ा है। इनके राज्य में भी तो यही होता है। मूल छत्तीसगढ़ के लोग बहुत ही सीधे हैं। ये इनकी सीधाई ही है, जिसके कारण ये लोग आज पलायन का सहारा लेकर दूसरे राज्यों सुदूर जम्मू-कश्मीर, पंजाब, गुजरात और असम तक जाने लगे हैं। अंत में एक प्रश्न, रायपुर के यातायात के बारे में आपने लिख तो दिया, पर उस यातायात को सुधारने के लिए क्या आपने एक कदम भी बढ़ाया। किसी एक को भी यातायात नियमों से परिचित कराया? जिस शहर में रहकर आप अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं, उस पर ऐसी टिप्पणी कम से कम आपको शोभा नहीं देती। यह सब मैं इसीलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मैं मूलत: छत्तीसगढिय़ा हूँ, बहरहाल भोपाल में रह रहा हूं।

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ ने कहा…

जब नैनो सड़्कों पर दौड़ेगी तब कया होगा?

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

श्रीमान बेनामीजी
पहले तो मुझे अटपटा लग रहा है कि न जाने मैं किसे जवाब दे रहा हूँ . दूसरा शायद आपको सन्दर्भ नहीं समझ आया . मैंने ध्यान आकृष्ट करना चाहा कि रायपुर में पैदल चलने वालों के लिए ट्रैफिक सिग्नल में कोई प्रावधान नहीं है जो कि सामान्यतः होना चाहिए . जहां तक बात रही अपने शहर पर टिप्पणी करने की तो इसमें ऐसा क्या गलत हो गया जो सत्य है वो सत्य है . रही बात छत्तीसगढ़ से लोगों के पलायन की तो आपने क्या किया इसे रोकने के लिए ?

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

ये तो सारे देश के हालात है...यहाँ कोई नियम पर चलना ही नहीं चाहता..!जीवन में स्व..अनुशाशन होने से ही कुछ हो सकता है...यहाँ तो नियम तोड़ने के लिए ही बनाये जाते है...

श्यामल सुमन ने कहा…

लगभग पूरे देश में यही हाल है।
फिर भी आपका जायज सवाल है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.