आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों के साथ दुर्व्यवहार और घातक हमलों से हम और हमारी सरकार कब सीखेंगे ? जब हम किसी और देश में जाते हैं वहाँ बसने के उद्देश्य से तो वहाँ के लोग विरोध करते ही हैं । और ऐसा केवल विदेशों में ही नही हमारे यहाँ राज्यों में भी हो रहा है । यह विरोध केवल एक संकुचित मानसिकता का परिचायक ही है । वसुधेव कुटुम्बकम तो शायद केवल लेखन तक ही सीमित रह गया है । लेकिन जब ये मानसिकता तथाकथित विकसित देशों में होती है तो सोचना पड़ता है कि विकास के मायने क्या हैं । क्या समृद्धि, सुविधा और धन ही विकास है या आपकी मानसिकता का विकास ही सच्चा विकास है । क्या एक आदर्श समाज और विश्व की परिकल्पना केवल एक दिवास्वप्न है या इसे वास्तविकता में बदला जा सकता है ?
हमारे जो भी देशवासी विदेश खासकर वहाँ बसने जाने वाले इस बात से भलीभांति परिचित रहते हैं कि उन्हें एक दोयम दर्जे के नागरिक की तरह जीना होगा और अपमान का कड़वा घूँट भी पीना पड़ेगा , इसके बावजूद ये प्रक्रिया जारी है । इसके पीछे क्या सिर्फ़ अर्थ और सुविधा ही जिम्मेदार हैं । हमारी कई प्रतिभाएं उचित अवसर नही मिलने के कारण भी विस्थापित होने को मजबूर हो जाती हैं । कब हमारी व्यवस्था इस बारे में गंभीरता से विचार करेगी । हम अगर एक गरीब और अत्यधिक आबादी के देश हैं तो हमारे यहाँ प्रतिभाओं की भी कमी नही है आवश्यकता है तो सिर्फ़ इस अमूल्य ज्ञान धन को उचित अवसर प्रदान करने की ।
आस्ट्रेलिया की घटना से दुखी होकर अमिताभ बच्चन ने वहां के एक विश्विद्यालय द्वारा प्रदान किए जाने वाला सम्मान ठुकरा दिया है । विदेशों में रहने वाले उच्च स्तिथि प्राप्त भारतीय भी उनका अनुकरण करें तो वे अपनी मातृभूमि के लिए एक आदर्श बनेंगे ।
4 टिप्पणियां:
bahut achhi aur saamyik baat....
badhai
आस्ट्रेलिया में हो रहीं नस्लवाद की घटनाऐं निन्दनीय हैं. अमिताभ जी के कदम को साधुवाद.
सिर्फ अपने चन्द क्षूद्र स्वार्थों की पूर्ती हेतु जब हम अपने देश में ही इस प्रकार की घटनाओं को रोकने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं तो अगर विदेशों में हम लोगों के साथ इस प्रकार का व्यवहार हो रहा है तो कुछ गलत नहीं है।
दूसरों को सुधार की शिक्षा देने से पहले हमें स्वयं में सुधार करना होगा।
अमिताभ जी, ने जो किया वो बहुत काम है, उस देश से सम्मान लेने की गुन्जाईश ही नही होती जहा भारतीयों की इज़्ज़त ना हॊ
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