शनिवार, 31 जुलाई 2010

क्या सूप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार से यह पूछेगी की देश में किसकी सरकार चल रही है ?

कुछ समय पहले सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार के बारे में यह कहा था की आधे प्रदेश में तो आपकी सरकार नहीं चल रही है यहाँ पढ़ें .छत्तीसगढ़ सरकार तो अपना पूरा प्रयास कर रही है नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए. यह समस्या किसी एक राज्य की समस्या नहीं है .विभिन्न राज्य के मुख्यमंत्रियों में भी एक राय नहीं है . केंद्र सरकार और काँग्रेस पार्टी में भी मतभेद है इस विषय में. आजतक न तो सोनिया गांधी न राहुल ने इसके बारे में कोई टिप्पणी की . कुछ लोगों का तो आरोप है की आंध्र,झारखंड और पश्चिम बंगाल में वह इन का समर्थन लेती है चुनाव में. लंबे समय से इस समस्या पर ध्यान नहीं देने के कारण इसने विकराल रूप ले लिया है . अपने छोटे से पड़ोसी देश श्री लंका से कुछ सबक लिया जाएगा ?

लंबे समय से पश्चिम बंगाल, झारखंड में रात के समय रेल यातायात ठप्प है . दिन में भी पायलट इंजिन की सुरक्षा में रेलगाड़ियों का आवागमन हो रहा है. यह तब से प्रारंभ है जब नक्सलियों ने ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को उड़ा दिया था . रेल भारत सरकार का मंत्रालय है . देश के एक बड़े भूभाग में सुरक्षा प्रदान करने में असक्षमता के लिए कौन जिम्मेदार है ? कोलकाता-मुंबई एक मुख्य रेल मार्ग है . इस संकट के कारण पूरा यातायात प्रभावित है इस रूट में.

क्या सूप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार से भी यही प्रश्न पूछेगी की किसकी सरकार है इस देश में ?

बुधवार, 14 जुलाई 2010

राष्ट्रमंडलीय खेल और राष्ट्र का सम्मान

कॉमन वैल्थ याने जो आम संपत्ति थी एक साम्राज्य की उसका प्रतीक है राष्ट्रमंडलीय खेल. किसकी संपत्ति ब्रिटैन की, जिसपर वह आज तक काबीज है कहीं खुले रूप में कहीं क्षद्म रूप में . हमारे देश में यह मौजूद है क्षद्म र्रोप में क्योंकि आज भी हम उसी कानून व्यवस्था और नौकरशाही के सहारे देश चला रहे हैं जो अंग्रेजों ने अपने लिए बनाई थी .
80,000 करोड़ का खर्च किया जा रहा है इस आयोजन पर . कहीं किसीसे पूछने की जरूरत महसूस हुई जिनने यह पैसा अपनी मेहनत से जमा किया था सरकार के खजाने में ?
ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है इस देश में की पूछा जाए . मूठी भर लोग , राजनेता और अधिकारी फैसला करते हैं जनता के धन के बंदरबाँट कैसे होगी .
इस देश की 80 प्रतिशत जनता गरीब है . याने लगभग 96 करोड़ . इस पैसे को अगर इन गरीबों में बाँट दिया जाता तो इस देश की गरीबी दूर हो जाती . लेकिन ऐसा चाहता कौन है . समाजवाद के प्रवर्तक आज अपना मुह छुपा रहे होंगे कि उनके नाम पर डाकुओं की फ़ौज खडी है .
जिस देश में हर जगह नेता ही बसे हों वहाँ शुभम   करोति कल्याणं की सोच ही बेमानी लगती है .

एक ठो डंडा पकड़ के नाचे हम
वही जो हमारे पीठ पे पड़ा था कभी

फिर भी है एक आशा क्योंकि आशा में ही जीवन है

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

शनिवार, 3 जुलाई 2010

ब्लागर में अपने ब्लॉग के आँकड़े देखने की नई सुविधा

ब्लागर ने अपने dashboard में एक नयी सुविधा प्रारंभ की है . इससे आपके ब्लाग में रोज कितने लोग और कहाँ से आये इत्यादी काफी विवरण उपलब्ध है . आपके कौन से पोस्ट पढ़े गए यह भी इसमें दिया हुआ है