गुरुवार, 23 जुलाई 2009
हैप्पी आवर किसके लिए हैप्पी है ?
आजकल ज्यादातर मदिरालयों के बाहर हैप्पी आवर के बोर्ड दिखाई दे जायेंगे . इनका समय दिन के ११ बजे से शाम के ६ बजे तक हो सकता है . छूट का प्रतिशत भी २५ से ५० प्रतिशत हो सकता है . इस तरह का आमंत्रण दिन में भी नशा करने को प्रायोजित कर रहा है . जब दिन में भी इतनी छूट देकर मुनाफा कमाया जा सकता है तो रात को कितना मुनाफा होता होगा ? कहीं न कहीं ग्राहक को चूना भी लगाया जा रहा होगा ये कैसे यह खोज का विषय हो सकता है . सबेरे सबेरे से जो पीने लगे उसका और उसके परिवार का क्या होगा ! इस गोरख धंदे में सरकार की भी भागीदारी है .
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3 टिप्पणियां:
कम से कम पीने वालों और उनके परिवारवालों के लिए तो हहैप्पी आवर हैप्पी नहीं हो सकता !!
मुनाफा कमाने की कोई सीमा नहीं होती, लालच की कोई सीमा नही होती। इन सब पर यदि लगाम लगानी है तो क़ानून बनाकर नहीं बल्कि समाज में नैतिकता का पुनर्स्थापन करना होगा, क्योंकि कानून में फ़िर भी बचने की संभावना रहती है, नैतिकता के मामले में तो इंसान अपनी आत्मा, अपने ज़मीर के लिए ख़ुद जवाबदेह होता है, ख़ुद से बचकर कहाँ जाएगा।
पीने वाला इतना सोचने लगे तो क्या खाक पियेगा!!
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