शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

योग्यता जाये भाड़ में , हर चीज नीलाम कर दो शायद इससे बेईमानी कम हो

आये दिन हर क्षेत्र में बढ़ते भर्ष्टाचार को देखते हुए तो लगता है इसका राष्ट्रीयकरण कर देना चाहिए . जैसे रेलवे ने दलालों की देखा देखि तत्काल कर लगा दिया अच्छा किया कुछ पैसा तो सरकार के पास आया . अगर जेब से पैसा निकलना ही है तो सरकार की जेब में क्यों न जाये .
भ्रष्टाचार और महंगाई का मूल कारण है एक अनार सौ बीमार . जब वस्तुएं और अवसर कम होंगे या बेबुनियाद के कानून और ढीली कानून व्यवस्था होगी तो ये फै़लेगा ही .
क्या इसका कोई इलाज नहीं है . कल ही एक चैनल में चर्चा हो रही थी कि संसद और सांसद जनता के अमूल्य धन का दुरुपोग कर रहे हैं समाचारों में प्रकाशित मामलों को जैसे एक सीरियल की चर्चा में देश और जनता का अमूल्य धन व्यर्थ कर रहे हैं इसी कार्यक्रम में बताया गया कि सरकारी रिपोर्ट में बताया गया कि सरकार के द्वारा खर्च किया गया १ रूपये में ३० पैसा ही उचित स्थान तक पहुँच रहा है . भाई अगर ऐसा है तो भ्रस्ताचार में भरी कमी आई है क्योंकि राजीव गाँधी के ज़माने में तो केवल १० पैसा पहुच रहा था .
हर तरह के उपाय किये जा रहे हैं लोगों को पैसा बैंक खाते के द्वारा दिया जाया इत्यादि इत्यादि लेकिन दी़मक और चूहे कही न कही से चारा चर ही जाते हैं . आज ही एक फैसला और आया है प्रसिद्ध चारा घोटाले के बारे में, एक भूतपूर्व सांसद और अन्य १३ को सजा दी गयी है . झारखण्ड में ५३ मामले इस बारे में ७ स्पेशल सीबीआई कोर्ट में चल रहे हैं जिनमे से ३० मामलों में २३० लोगों को सजा हो चुकी है जिनमे लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्र भी शामिल हैं. आज ही खबर आई कि कांग्रेस ने अपने कोटे से लालू यादव को संसद में प्रथम पंक्ति में स्थान उपलब्ध कराया है ! कल ही राहुल गाँधी का बयां आया था युवक कांग्रेसिओं के लिए कि वे अपने वाहनों में और नंबर प्लेट में अपने पदों का प्रदर्शन न करें . आज जन प्रतिनिधि इतने पंगु हो गए हैं कि उन्हें फोकट की सुरक्षा के बिना घर से निकलने में भी डर लग रहा है क्या इसीलिए आजादी पाई थी कि कुछ विदेशी शासकों को हटाकर देसी बैठा दिए जाएँ . इसके लिए भी वे संसद में वक़्त बर्बाद कर रहे हैं .

तो हम समस्या का निदान ढूंढते ढूंढते कहाँ आ गये ! अनावश्यक और पैसा वसूली वाले कानूनों को खत्म करना, कानून व्यवस्था का भारतीयकरण करना . सरकारी नियंत्रण को कम से कम करना . लोगों का रुझान सरकारी नौकरी पाने से दूर करना . उनमे आत्मस्वाभिमान जगाना . अगर ये सब नहीं हो सकता तो हर चीज चाहे वो नौकरी हो कोई अन्य अवसर जैसे मेडिकल कॉलेज की सीट को खुली नीलामी से बेच देना .

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

आपकी चिंता बिल्‍कुल जायज है .. भ्रष्‍टाचार बढता जा रहा है .. सचमुच नीलामी हो रही है हर सीट , हर पद की !!

shama ने कहा…

भ्रष्टाचार का 'राष्टीय कारण ' तो इंदिरा गाँधी के ज़माने में खुले आम शुरू हो गया ..! उसके पूर्व होता नही था ,ये बात नही ,लेकिन , छुप छुपके अधिक ..! पर जोभी है , हमारे ही समाज की उपज है ..इन्हें( भ्रष्ट लोगों को ) कहीँ बाहर से निर्यात तो नही किया गया ..! फिर इनके पारिवारिक संस्कार कहाँ गए ?एक कडुआ सच है,कि, ये सभी हमारे ही माँ बहनों के जाए हैं...
और एक सत्य येभी है,कि, हमारे परिवारों में एक अच्छे नागरिक बननेके संस्कार दिए ही नही जाते...पूजा पाठ करो, मन्नतें माँगो, दर्गा पे जाओ...ये सब करमकांड तो दिन दूने रात चौगुने बढ़ते जा रहे हैं..(उसमे हमारे टीवी serials का भी ज़बरदस्त सहभाग है), लेकिन मैंने आजतक किसी माँ या पिता को ये आशीष देते नही सुना," डॉक्टर ,engineer, जो भी बनना हो बनो, पहले अच्छे,सच्चे, नेक इंसान बनो..अच्छे भारत वासी बनो....!" ये काम तो कोई अन्य करेगा....हमारी औलाद ने तो डॉलर में कमाना चाहिए..और जब कोई देख न रहा हो तब, ट्राफिक सिग्नल पे रेड light jump करो,कोई बात नही..पकड़ में आए तो बेवक़ूफ़!

गर समय हो तो ज़रूर पढ़ें," प्यारकी राह दिखा दुनियाँ को".

http://lalilekh.blogspot.com

is blog pe...

Aur bhrashtachar, lokh sankhya ka ratio ke mutabiq badhegahee...! Ek bus hai,jisme 50 seats ho,aur 5000 ka q ho,to, que todne wale milhee jayenge..!

Ek aur baat," ye kahan aa gaye?"3 pe aapkee tippanee samajh me nahee aayee..hansta hua chehra hai,to wo kyon?