बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

वास्तव में हमारा चरित्र क्या है

इसे अन्यथा न लें

तिरिया चरित्रम पुरुषश्य भाग्यम
देवो न जानती .............

यह लोकोक्ति कहाँ से और कैसे उपजी इसके बारे में तो इतिहासकार ही बता सकते हैं ।

तुलसीदास भी कुछ भ्रम निर्मित कर गए ;
ढोंर गवार शूद्र पशु नारी ये सब तारण के अधिकारी । इसकी व्याख्या लोग अलग अलग करते हैं ।

अभी तक जो कहा गया वह इतिहास है

लेकिन वर्तमान में भी हम क्या कर रहे हैं

सबको मालूम है और ज़्यादातर लोग भ्रष्टाचार कर रहे हैं और बड़ी बड़ी संस्थाएं चुप बैठी हैं ।

इस व्यवस्था को जन्म देने के लिये क्या हम सब जिम्मेदार नहीं हैं ?

भय के बिना प्रीति नहीं होती - जब तक ऐसा कानून नहीं होगा जो भ्रष्टाचार को सबसे बड़े अपराध की श्रेणी में रखे , सब ऐसा ही चलता रहेगा ।

बूंद बूंद से घड़ा भरता है , घड़े को भरने से रोकने के लिए बूंद को रोकना  होगा ।

सबको पता है कहाँ से यह शुरू होता है और कहाँ खत्म ।

अब यह देश की जनता पर ही निर्भर करता है की वह अपने बारे में क्या चाहती है ।

स्कूली साक्षरता भले ही नहीं आई हो सरकारी हिसाबों में

इस देश की जनता अब सब समझती है ।

जय हिन्द 

4 टिप्‍पणियां:

issbaar ने कहा…

bahut badiya, sadhuvad ji!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

इस भ्रष्टाचार में त्रिया चरित कहां से आ गया :)

राज भाटिय़ा ने कहा…

सहमत हे जी बाकी cmpershad से भी सहमत हे धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हर सूत्र का सूत्र खींच दिया है।