एक जल विद्युत सयंत्र का निर्गमन क्षेत्र
एक सुरंग से बाहर आते हुए
अगली सुबह केदारनाथ के लिए यात्रा प्रारम्भ हुई.यहाँ देखें प्राकृतिक कार धुलाई
केदारनाथ जी की दूरी हरिद्वार से २६९ किलोमीटर है . नक्शे में अगर देखा जाये तो यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ एक लाइन में दिखाई देते हैं लेकिन पहुँच मार्ग के लिए ऊपर जाकर फिर कुछ नीचे आकर फिर ऊपर जाना होता है . हरिद्वार>ऋषिकेश>शिवपुरी>बयासी>कौदिअला >देवप्रयाग>श्रीनगर>कालिया सार >रुद्रप्रयाग>तिलवारा>अगस्त्यमुनि>कुन्द्द >गुप्तकाशी>फाटा >सोनप्रयाग>गौरीकुंड >रामबरा>केदारनाथ . रुद्रप्रयाग से केदारनाथ और बद्रीनाथ का रास्ता अलग होता है .हमारा आज का पडाव था गुप्तकाशी पहले हमने एक मोड़ लेते हुए त्रिजुगीनारायण मंदिर के लिए प्रस्थान किया . कहा जाता है कि शिव पार्वती का विवाह यहाँ हुआ था . यह एक पहाडी पर स्थित है लेकिन यहाँ भी पंडितों की भीड़ है .
काम पर जाती महिलाएं
वानर सेना
आगे बढ़ते हुए चोपटा होते हुए जिसे यहाँ का स्विट्जरलैंड कहा जाता है (शायद उचाई के कारण) हमारा आज का रास्ता केदारनाथ सुरक्षित प्राणी क्षेत्र से होकर गुजरता था . कस्तूरी मृग के बचाव के लिए यह विशेष क्षेत्र बनाया गया है. टिहरी क्षेत्र में नया पुल
गाँव का स्कूल
कस्तूरी मृग
हमारी आज की यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि थी कस्तूरी मृग के उसके प्राकृतिक निवास में दर्शन यह भी एक उपलब्धि थी कि उसका चित्र लेने में सफल होना . ड्राईवर भी अचंभित हो गया था उसका कहना था आज तक उसने मृग को नहीं देखा था :).
आज की यात्रा के पडाव गुप्तकाशी में साध्य काल में पहुंचकर रात्रि विश्राम
सांझ का तारा
क्रमशः:
6 टिप्पणियां:
सुंदर विवरण .. अच्छे चित्र !!
सिन्हा जी, आपने तो पुरानी यादें ताज़ा करा दी. केदारनाथ से चोपटा होते हुए हम भी बद्री तक की यात्रा कर चुके हैं. लेकिन गंगोत्री , यमनोत्री हर साल सोचते ही रह जाते हैं. सचमुच बड़ा ही अलोकिक द्रश्य होता है इन तीर्थ स्थानों का.
नयनाभिराम चित्र और अच्छा यात्रा-व्रत्त। आभार॥
आज का लेख ठेर सारी जानकारी लिये है साथ मै सुंदर चित्र भी, आप का बहुत धन्यवाद
बहुत बढिया महेश भैया।वर्णन भी मज़ेदार और चित्र भी शानदार्।
Mahesh ji ........ chitron ke saath aapka yatra vrataant lajawaab hai ....
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