शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

राज खुल गया लोग क्यों नशा करते हैं ?

अमेरिका के दो राज्यों जार्जिया और टेक्सस के मनोवैज्ञानिकों ने एक प्रयोग में पाया की पुरुष जब स्त्री का अवर ग्लास(रेत की घड़ी) जैसा फिगर देखता है तो उसके दिमाग के एक विशेष क्षेत्र में प्रतिक्रिया होती है . यह प्रतिक्रिया बेडौल लोगों को देखने से नहीं होती . इसी तरह की प्रतिक्रिया स्त्रियों में  होती है चौड़े कंधे वाले सुडौल पुरुष को देखकर.

आप कहेंगे इससे नशे का क्या संबंध ?

तो सुनिए व्यक्ति जब मदिरा का गिलास देखता है या अन्य नशा करता है तो दिमाग के उसी हिस्से में वैसी ही प्रतिक्रिया होती है, जैसी की ऊपर बताई गयी है !

खुल गया न राज , पिछले नहीं इस जन्म का ही :)

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

क्या सरकार को नक्सलवादियों की ब्लैकमेलिंग का शिकार होना चाहिए

नृशंश मानवघाती नक्सलवादियों के एक नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी ने सरकार के सामने प्रस्ताव रखा है कि अगर सरकार अपना "ग्रीन हंट " अभियान रोकती है तो वो भी सुरक्षा दलों और सरकारी अधिकारियों पर हमला नहीं करेंगे .

जब अपनी जान पर आ पड़ी तो समझौता करने के लिए प्रयास ? अभी तक जो जाने इनने ली है उसकी सजा कौन भुगतेगा या इन्हे छोड़ दिया जाएगा ?

इस समाचार मे आदिवासियों का कोई जिक्र नहीं है , जिनकी भी ये हत्या करते रहे हैं .इस बात से यह स्पष्ट हो गया है कि इनका कोई जनाधार नहीं है . जनाधार पर आधारित किसी  आंदोलन को दुनिया की कोई भी सरकार नहीं दबा सकती है  चाहे कितना भी धन बल लगा ले .इनकी असली नजर उस अपर वन एवं खनिज सम्पदा पर थी जो प्रभावित क्षेत्रों मे विद्यमान है . इसका काफी दोहन भी ये प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कर चुके हैं , आदिवसियों और वनांचल के ठेकेदारों से वसूली करके . आयकर विभाग अगर सूक्ष्म जाँच करे तो इन नेताओं की अपार  संपत्ति का पता लगाया जा सकता है . इनके सारे बड़े नेता दो राज्यों से आते हैं यह किसी से छुपा नहीं है
.
कहाँ हैं इनके समर्थक तथाकथित मानवधिकारवादी, कहाँ है उनका क्षद्म आदिवासी प्रेम . इसकी भी गहन जाँच होनी चाहिए कि इनका क्या संबंध है नक्सलवादियों से .

अगर सरकार किसी भी दबाव मे आकर इनसे कोई भी समझौता करती है तो एक और गलत परंपरा का निर्माण करेगी जैसी भूल उसने पहले भी कश्मीर और पंजाब मे की है . जिन आतंकवादियों को छोड़ दिया गया वे आज भी  मुख्य धारा मे शामिल होने के बजाय अलगाववाद का झंडा उठाये घूम रहे हैं .

अब जबकी इनके एक बड़े नेता जिन्होने अपना उपनाम गांधी रखा है लेकिन कार्य बिल्कुल विपरीत हैं सरकार की पकड़ मे हैं , उससे अंदर का सब सच उगलवाने का प्रयास करना चाहिए . किस भी तरह का समझौता एक गलत संदेश लेकर जाएगा कि सामूहिक अत्याचार करो सरकार को दबाव मे डालो और छूट जाओ .

क्या जवाब देगी सरकार उन लोगों के परिवारों को जिनने अपनी जान गवाईं है इनके हाथों ? जिसमें सरकारी से लेकर आम आदिवासी शामिल हैं .

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है

आप में से बहुतों ने शायद यह विज्ञापन टीवी में देखा होगा . यह  एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का विज्ञापन है.
याद आ गया बचपन जब नमक और कोयले के चूर्ण का उपयोग होता था दाँत साफ़ करने के लिए . वही फॉर्मूला अब एक पैक टूथपेस्ट में महंगे दामों में उपलब्ध कराया जा रहा है . यही है विज्ञान की प्रगति . नीम और बबूल के दातून जिन्होने उपयोग किए उन  उम्रदराज लोगों के दाँतो की आज भी सुरक्षा कर रहे हैं .
जिस तरह विदेशी लोगों ने भारतीय पेड़ों और जड़ीबूटियों का पेटेंट करवाने का प्रयास किया कहीं उनका अगला प्रयास नमक का पेटेंट करवाने का न हो .

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

माइक्रोसॉफ़्ट का हिन्दी लिखने वाला औज़ार

कुछ समय से मैं इसका उपयोग करके हिन्दी लिख रहा हूँ . टास्क बार में एक बटन को क्लिक करके आप हिन्दी या अंग्रेजी याने देवनागरी या रोमन में लिख सकते हैं.
आज इसमे एक नयी चीज दिखाई दी , एक वर्चुअल की बोर्ड जिसकी सहायता से आप कठिन शब्दो को भी लिख सकते हैं . यह अभी बीटा रूप में है याने अभी इसपर काम चल ही रहा है .
विंडोज एक्सपी में इसे उपयोग करने का तरीका नीचे दिया है . अन्य वर्शन में उपयोग करने  के लिए इस लिंक का उपयोग  करें
Microsoft Indic Language Input Tool 
Instructions for Windows XP
Instructions for Windows Vista
Instructions for Windows 7


Windows XP

Enabling Indic Language Support

  1. Click Start, click Control Panel, and then double-click Regional and Language Options.
  2. On the Languages tab, select the Install files for complex script and right-to-left languages (including Thai) check box.
  3. Click on Details.
  4. On the Advanced tab, select the Extend support of advanced text services to all programs check box.
  5. Click OK to dismiss the Text Services and Input Languages window.
  6. Click OK to dismiss the Regional and Language Options window.
    You may be asked to insert the Windows XP installation media during this process.
    A restart may be necessary to complete the process.

Using Microsoft Indic Language Input Tool ("ILIT")

Do the following to use Microsoft ILIT in any application, such as Microsoft Word:
  1. Open the application in which you would like to enter Indic text.
  2. Change the language using the language bar, which typically appears in the taskbar as follows.
  3. The language bar will now show the current language.
  4. You can now start typing in English and whatever you type automatically gets transliterated after a word-breaking character like a space, comma, etc. is entered. Note that this language setting is per application. You may have to repeat the steps above for each application you want to use Microsoft ILIT in.

Turning on the language bar

If you do not see the language bar in the task bar (at the bottom of the desktop) or floating on the desktop please do the following:
  1. Click Start, click Control Panel, and then double-click Regional and Language Options.
  2. On the Languages tab, under Text services and input languages, click Details.
  3. Under Preferences, click Language Bar.
  4. Select the Show the Language bar on the desktop check box.

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

अमन की आशा , जी नहीं यहाँ न मैं ब्लॉग जगत की बात कर रहा हूँ , न महाराष्ट्र की

कुछ दिनो से टीवी में एक विज्ञापन आ रहा है , कुछ अलग सा.  "अमन की आशा"
दरअसल यह एक प्रयास है , "टाइम्स ऑफ इंडिया" और पाकिस्तान के"जंग" समूह का दो देशों के बीच  मैत्री एवं सदभावना का . अच्छा प्रयास है की दो पड़ोसी अच्छे रिश्ते बना सकें . इस प्रयास का महत्व इस लिए भी बढ़ जाता है कि यह कोई राजनैतिक प्रयास नहीं है . दोनों देशों के प्रतिष्ठित समाचार पत्र समूहों का है .
जितना खून इन देशों में बहा है आजादी के बाद , विभिन्न कारणों से शायद ही इतना रक्त पात कभी इस धरा पर हुआ हो . अंग्रेजों ने अपनी राजनीति खेली और सफल रहे वही खेल हमारे कुछ लोगों ने सीख लिया और आजाद होते हुए भी पड़ोसी देश नफरत और हिंसा का जहर पीते रहे .इन का प्रयास कितना सफल होगा यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन आम आदमी तंग आ चुका है इस हिंसा से .
कुछ लोग इन प्रयासों से सहमत नहीं भी होंगे क्योंकि उनकी दुकान बंद हो जाएगी . लेकिन इनकी दुकानदारी
से ज्यादा जरूरी है अमन और चैन


aman ki asha

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

बेनामी और घूंघट

घूंघट(ब्लॉग) के पट खोल री तोहे पिया (बेनामी छद्मनामी) मिलेंगे . ये परंपरा शायद अपने देश ही की उपज है जिसे पश्चिम ने बाद में अपनाया . इस देश में यह इसलिये उपजी की विदेशियों का शासन लंबे समय तक रहा और राज कोप से बचने के लिए लोग इसका सहारा लेते रहे . छ्द्म नामो से लोगो ने बहुत लिखा कविता, कहानी, उपन्यास और लेख .

घूंघट की परंपरा भी इस्लाम के इस देश में आने से हुई . इन दोनों में एक समकालीनता है .
पहले के बेनामी और ब्लॉग जगत के बेनामी में मुख्य फर्क यह है की पहले ज्यादातर लोग सुरक्षात्मक कारणो से ऐसा करते थे अब अपनी भड़ास निकालने के लिए करते हैं .

इंटरनेट के आने से यह परंपरा और पुष्पित पल्लवित हुई क्योंकि लोग अपनी पहचान सबको नहीं बताना चाहते थे , विशेषकर महिलाएँ और कुछ शासकीय कर्मचारी  . ब्लॉग जगत के आने से इसका और विस्तार हो गया क्योंकि ईमेल से तब भी यह पता लग सकता था की आप कहाँ के हैं . ब्लॉग में आपकी इच्छा है, कितनी जानकारी आप अपने परिचय में डालते है . सिर्फ एक छद्म नाम दे सकते हैं.अपनी जगह एक फूल का चित्र लगा सकते हैं, चाहें तो अपना ईमेल आईडी और फोन नंबर इत्यादि दें या नहीं दें .अगर आप यह सब नहीं देते तो आप केवल एक तरफा संवाद करना चाहते हैं. अगर आप कोई एक भी लिंक देते हैं तो यह समझा जाता है कि इस माध्यम से आप सार्वजनिक  संपर्क के लिए उपलब्ध हैं .वैसे किसी ने तो "बेनामी" नाम से ब्लॉग भी बना लिया है

ब्लॉगर ने भी पूरी सुविधा दे रखी है इस सबके लिए . लेकिन फिर भी कुछ जानकार लोग सब पता लगा लेते हैं .आपका क्या ख्याल है इस बारे में .