रविवार, 14 मार्च 2010

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आज स्‍वास्‍थ्‍य ठीक नहीं है। रात से बदन दर्द कर रहा है। हल्‍का बुखार भी है। गतिविधि आंशिक ही रहेंगी।
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प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI - क्या हुआ सर ?
आशा है जल्द ठीक हो जायेंगे ! भले और चंगे भी !
Mar 12
Dr. Prem Janmejai - zaankar chinta huee, abhi to mahila bill pass hona hai, zaldi swasth hon, aap jaiose log sakriya hi achhe lagate hain bimari aap Mehangaee ko saunp denMar 12
rashmi ravija - ohh...doctor ki rai lijiye aur aaram kijiye...Get well soonMar 12
Dineshrai Dwivedi - पंडित जी! दवा लें और आराम करें।Mar 12
partap sehgal - main Prem bhai ki baat ki taaeed karta hoon. akshrasha.Mar 13
Mayur Dubey - टेंशन मत लें, आपको कुछ नहीं होगा , इस मौके का फायदा उठाते हुए सिर्फ आराम करेंMar 13
Pramendra Pratap Singh - दवा दे और आराम फरमाऍंMar 13
Yashwant Singh - आपकी नई पोस्ट का लिंक अपने मेल पर आने से वंचित रहूंगा, इसकी खुशी है. आपके स्वास्थ्य खराब होने पर दुख है...Mar 13
Pramendra Pratap Singh - @ Yashwant Singh

हा हा हा
Mar 13
AMIT TYAGI - kya hua bade bhai....sewa ka moka dijiyeMar 13
अविनाश वाचस्पति - मैं स्‍वस्‍थ परंतु ब्रॉडबैंड का स्‍वास्‍थ्‍य खराब :-( सर्वर लड़खड़ा रहा है लगता है पिए हुए है11:48 am
Dineshrai Dwivedi - डाक्टर ने आप को जो दवा पीने को दी थी उसे ब्रॉडबैंड को तो नहीं पिला दिया?11:51 am
Vivek Rastogi - शीघ्र स्वस्थ हों हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।3:09 pm
Vivek Rastogi - चूहे वाले अचार का तो कोई हाथ नहीं है न ?3:09 pm
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पांच किलो अचार में ढाई सौ ग्राम का गला हुआ चूहा मिला। आपकी प्रतिक्रिया ...
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Prashant Priyadarshi - फ्री में नान वेज खाने को मिल रहा है फिर भी एतराज, सच में कलयुग है महाराज.. :P12:20 pm
prithvi . - aap kya ek kilo ka chuuha chah rhe they!1:41 pm
Vivek Rastogi - अचार की शीशी पर क्या लिखा था आम का अचार या चूहे का अचार।3:07 pm
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इतनी बड़ी उम्र की मैडम से प्रेम ..वह भी मिस वेलेंटाईन - शरद कोकास


वेलेंटाइन डे का नाम जब पहली बार सुना तब हम गधा पचीसी की उम्र पार कर चुके थे और बाकायदा इष्ट मित्रों और सम्बन्धियों की उपस्थिति में दोपाये से चौपाये बन चुके थे । दाँपत्य जीवन में प्रेम ,भोजन में रोटी की तरह शामिल था और ज़िन्दगी का मज़ा आने लगा था । तीज-त्योहार पर्व सभी आनन्द से मनाते थे कि जीवन में इस नये पर्व का प्रवेश हुआ । अब तो यह पर्व हमारे जन जीवन में शामिल हो ही चुका है   और जितना इसका विरोध हो रहा है उतना ही यह लोकप्रिय होता जा रहा है । इस पर्व का नाम  पहली बार जानने का भी एक मज़ेदार किस्सा है ।
हुआ यह कि एक दिन  एक बालक आया और मुझसे पूछने लगा “अंकल आपके पास कोई प्रेम की कविता है ?” मैने पूछा “ क्या करोगे , कहीं अपने नाम से छपवाना है क्या ,या स्वरचित काव्य प्रतियोगिता में पढना है ?” अक्सर मेरे पास स्कूल-कॉलेज के बच्चे आते रहते  हैं और स्कूल की कविता प्रतियोगिता ,भाषण प्रतियोगिता आदि के लिये कुछ कुछ सामग्री ले जाते हैं ।उस बालक ने शरमाते हुए कहा “ नहीं अंकल ,उनको... वेलेंटाईन को देना है ।“ वह कॉंवेंट में पढता था । मुझे लगा उसके यहाँ कोई वेलेंटाइन नाम की मैडम होगी जिनकी कविता आदि में रुचि होगी । अपनी साहित्यिक बिरादरी में एक और साहित्यप्रेमी जुड़ जाये यह सोचकर मैने उससे कहा “ ऐसा था तो उन्हे भी ले आते ।“ वह फिर शरमा गया और कहने लगा “ नहीं अंकल वह नहीं आ सकती ।“ मैने कहा “ ऐसी भी क्या बात है ..इस बहाने उनसे परिचय हो जाता , वे कविता वगैरह का शौक रखती हैं शायद ।“ वह पहले से ज़्यादा शरमा गया फिर कुछ हिम्मत जुटाकर बोला “ अंकल दरअसल मै उन्हे सरप्राइज़ देना चाहता हूँ । आपकी कविता के बहाने उनसे कहना चाहता हूँ कि मैं उनसे प्यार करता हूँ ।
मैडम से प्यार ..। मेरी नज़रों के सामने “ मेरा नाम जोकर “ का राजू घूम गया । मैने मन ही मन सोचा इतने बरसों बाद भी इस फिल्म का समाज में यह प्रभाव है । मैने गम्भीर होकर उससे कहा .. “ देखो बेटा .. यह प्रेम – व्रेम करने की उम्र नहीं है ,चुपचाप अपनी पढ़ाई में ध्यान दो । “ वह रुआँसा हो गया और कहने लगा ठीक है अंकल मैं उन्हे गुलाब का फूल ही दे दूंगा । मुझे लगा था कि उस पर मेरी बात का असर हुआ है लेकिन यह क्या ..यह तो मेरी कविता के बदले फूल देने पर उतारू हो गया है । मैने कुछ नर्म होकर कहा ..” ठीक है बेटा ..लेकिन इतनी बड़ी उम्र की मैडम से प्रेम ? और वह भी मिस वेलेंटाइन ..।
अब लड़के के पेट पकड़ पकड़ कर हँसने की बारी थी । बहरहाल उसने सब कुछ स्पष्ट किया ।पता चला कि वह हमारे ही एक कवि मित्र की बेटी थी और यह बालक कविता के बहाने उसे प्रभावित करना चाहता था ।बातों बातों में  हमने भी पता लगाया कि यह पर्व क्या है और क्यों मनाया जाता है आदि आदि । ज्ञात हुआ कि किन्ही संत वेलेंटाइन के नाम से यह पर्व मनाया जाता है । हमने सोचा हो सकता है , हमारे यहाँ भी तो संतों ने मनुष्यों को प्रेम का ही सन्देश दिया है । यह बात अलग है कि हम उनके नाम से प्रेम के नहीं धर्म के उत्सव मनाते हैं । अब प्रेम का यह उत्सव किसी विदेशी संत के नाम से ही सही ।
अब हर साल वेलेंटाईन डे पर यह किस्सा याद आता है और हम सबको सुनाते है । तो इस साल यह किस्सा आपने सुन लिया । सोचा था अपना कोई किस्सा सुनायेंगे लेकिन अब धैर्य नहीं है ..सो अगले साल । एक रेडीमेड कविता है ..जो कुछ साल पहले लिखी थी वही प्रस्तुत कर रहे हैं ..इससे ही आप बहुत कुछ समझ जायेंगे ।


                        वैलैनटाइन डे
 
उपहार में दी जाने वाली
नाजुक वस्तुओं के साथ
अपेक्षाएँ जुड़ी होती है
जो कभी नहीं टूटती

जेबखर्च से पैसे बचाकर
खरीदा गया  चीनी मिट्टी का गुलदस्ता
प्लास्टर ऑफ पेरिस की कोई मूरत 
लाख की एक कलम
पालिश किया हुआ कोई कर्णफूल
पत्थर जड़ी नाक की लौंग 
या काँच की चूड़ियाँ

किसी को सौंपते हुए
मन कांपता था
कहीं कुछ टूट न जाये
चटख न जाये कहीं कुछ
कोई खरोंच न आ जाये

बरसों बाद भी
खत्म नहीं होती अपेक्षाएँ
शुभकामनाओं की तरह
अल्पजीवी नहीं होती अपेक्षाएँ
पलती रहती हैं 
समय की आँच में 
पकती रहती हैं 

पगलाया सा  घूमता है 
एक बेबुनियाद खयाल 
जस की तस रखी होगीं
सभी चीजें उसके पास

और तो और
हमारा दिया सुर्ख़ गुलाब का फूल भी
कहीं न कहीं रखा होगा
किसी किताब के पीले पन्नों के बीच ।

                        शरद कोकास 

( कविता मेहरुन्निसा परवेज़ की पत्रिका "समरलोक" से व चित्र गूगल से साभार )

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