यह कहना है डॉ ब्रिज़ेंडीन का, कि लंबे समय से जो शक महिलाओं को था वह सच है . पुरुष हारमोन टेस्टेस्टेरोन इस सब के लिए जिम्मेदार है . इसीके प्रभाव से पुरुष महिला के रूप रंग और काया से प्रभावित होते हैं
वे कहती हैं कि महिलाओं को इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि पुरुष पुरुष है और सम्हल के रहना चाहिए.
वैसे हमारे देश में यह सलाह तो सदियों से दी जा रही है लेकिन कोई मानता है तो कोई नहीं नहीं मानने वाले लिव इन तक चले जाते हैं..
उनकी पुस्तक "Male Brain: A Breakthrough Understanding Of How Men And Boys Think are" में कुछ और तथ्यों पर भी प्रकाश डाला गया है .
1. पुरुष कामातुर होते हैं . पुरुष के दिमाग का वह हिस्सा जो काम वासना को नियंत्रित करता है महिलाओं के हिस्से से अढ़ाई गुना ज्यादा बड़ा होता है .
2. पुरुष ऐसी हरकतें करने के लिए बने हैं (programmed). "पुरुष तंद्रा" जोकि पुरुष हारमोन के कारण होती है के कारण वह स्त्री को निहारने से अपने आप को नहीं रोक पाता . इसकी तीव्रता उसके संस्कारों से नियंत्रित होती है .
3 पुरुष एक से ज्यादा संबंध बनाने के लिए आतुर होते हैं . पुस्तक के अनुसार पुरुष अपने जीवनकाल में औसतन 14 साथी चाहते हैं जबकि महिलाएँ एक या दो .
पुरुष को यौन संबंध के बाद तीव्र नींद आती है इसका कारण उसके दिमाग में oxytocin जोकि मूलतः एक स्त्री हार्मोन है का बहुतायत से स्त्राव होना है . इस नींद का यह मतलब नहीं लगाया जाना चाहिए कि वह आपसे प्यार नहीं करता .
4.पुरुष अपने संबंधों के बारे में ज्यादा झूठ बोलते हैं . जैविक रूप से पुरुष महिला से झूठ आसानी से बोल लेते हैं .
5.महिला के लिए संभोग पूर्वे प्रेम 24 घंटे तक विस्तारित हो सकता है पुरुष के लिए यह 3 मिनट तक सीमित है
वे कहती हैं पुरुष की आरंभिक भावनात्मक क्रिया स्त्री से ज्यादा शक्तिशाली हो सकती है लेकिन वह 2.5 सेकंड में अपने चेहरे से भाव छुपा सकता है या बदल सकता है .
उनका यह भी कहना है कि यह सब जानकारी पुरुष के बुरे व्यवहार को यथोचित नहीं ठहराती. यह उसे बुरे कर्म करने के लिए एक आधार नहीं प्रदान करती . लेकिन साथ ही वे यह भी कहती हैं कि पुरुष को अपने जैविक स्वरूप के बारे में बताने का अधिकार है और इसे वार्ता में भी शामिल किया जाना चाहिए
17 टिप्पणियां:
NICE
http://kavyawani.blogspot.com/
SHEKHAR KUMAWAT
डाक्टर साहब
दौनो ओर एक सी बात है
इसे फ़िलहाल अर्ध सत्य मान लूं चलेगा
सर अब तक ऐसे जितने भी शोधों /सर्वेक्षण के बारे में पढा देखा और सुना है .अब तक कोई भी ऐसा नहीं मिला जो संपूर्ण और अकाट्य हो । हो सकता है कि ब्रेजडीन जी ने इसके लिए जिन तथ्यों /अन्वेषणों का सहारा लिया हो सार्वभौमिक न होकर स्थान विशेष पर हों । कारण जो भी हों , बहस के लिए विषय रोचक है मगर इसके परिणाम को शत प्रतिशत सच और अंतिम सच मान लिया जाए ...ये ठीक नहीं लगता ।
अजय कुमार झा
इस शोध से सहमत हुआ जा सकता है। क्यों कि पुराने लोगों का अनुभव भी यही सब कहता है। ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए कहा जाता था कि परायी स्त्री के स्पर्श से भी दूर रहो।
ग़ज़ब का शोध है ...
मुझे इसपर लिखना है ..जल्द ही लिखती हूँ
अच्छी प्रस्तुति.....विचारणीय पोस्ट....
http://laddoospeaks.blogspot.com/
कोई नई बात नहीं है ।
ऊपर वाले ने स्त्री पुरुष को कुछ तो अलग बनाया है।
फिर भी सारी उंगलियाँ बराबर नहीं होती।
गीतानुसार गृहस्थ जीवन में ही ब्रहमचर्य का पालन किया जा सकता है। :)
शुक्रिया ,मगर विवादास्पद विचार !
हम तो समझते थे और अब भी मानते हैं कि
" है आग दोनो तरफ बराबर लगी हुई"।
उस शोध के रिपोर्ट की प्रतीक्षा है जो हमारे कुछ ऋषि मुनियों की परम्परा में बताएगी कि नारियाँ:
- अधिक कामातुरा होती हैं।
- अधिक खाती हैं
- अधिक बोलती हैं
- छलिया होती हैं ... ब्ला ब्ला बला :(
ऐसे शोध कुछ नहीं, बस 'अति' हैं।
डाक्टर साहब एकदम यही बात मैंने अपने एक लेख में लिखी । पर मैं कोई विशेषज्ञ नहीं अतः महिला ब्लोग्गेर्स ने मेरी बात को हवा में उड़ादिया और मुझ पर ही निम्न मानसिकता रखने का आरोप जड़ दिया। मैं भले ही कागजी डिग्रीयां लेने के मामले में पीछे रह गया हूँ पर आदमी की मानसिकता को पढने की अच्छी काबिलियत रखता हूँ। उन महिलाओं को मैंने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उनके कुछ मिथक टूट जाते पर मैं अपने खुद के अनुभव, जो की मैंने समाज में पुरुषों के विभिन्न वर्गों, जिसमे एक भिखारी से लेकर करोडपति और एक अनपढ़ से लेकर एक प्रोफेस्सर और एक चपरासी से लेकर एक आईएस शामिल हैं , के साथ रहकर हासिल किये हैं उनके आधारपर कहता हूँ की उपरोक्त बातोंमें सच्चाई है। हमारे सामाजिक नियम भी इसी बात की तरफ इशारा करते है जब यह कहा जाता की स्त्री को अनजान पुरुषो से बचाना चाहिए। पर आज की आधुनिकता किसी बंधन को पसंद नहीं करती। और यही बात गलत हो जाती है। आपकी इस पोस्ट से मुझे अपनी बात को सही ठहराने में आसानी होगी। धन्यवाद.
...प्रभावशाली प्रस्तुति!!!
आपकी बात सही है इसी कारण हमारे यहाँ पुरुषों को संस्कारित करने का कार्य किया जाता था। लेकिन वर्तमान में पुरुषों को संस्कारित करने के स्थान पर महिला के काम-भाव को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है जो समाज के लिए विंधवंसकारी सिद्ध होगा। यह बात में न जाने कितनी बार अपनी टिप्पणियों में लिख चुकी हूँ।
जो चीज इकहरी थी वह दोहरी निकली
सुलझी हुई जो बात थी उलझी निकली
सीप तोड़ी तो उसमें से मोती निकला
मोती तोड़ा तो उसमें से सीप निकली
अच्छी पोस्ट - आभार
उत्तम आलेख
विचारणीय विषय
महेश भैया इस मामले मे तो मुझे चुप रहना ही बेहतर लग रहा है।वरना ये सवाल भी उठ खड़ा होगा कि तुझे कैसे पता?हा हा हा हा।
जब पुरुष है तो पुरुषो वाले काम ही तो करेगा ना??? आप के लेख से सहमत है जी
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