मंगलवार, 30 मार्च 2010

भारतीय लड़कियाँ सबसे चुस्त


यह परिणाम है 34 देशो में 70000 बच्चों पर किए गए परीक्षण का . दुनिया के एक तिहाई बच्चे अलालों की श्रेणी में आते हैं जो रोज तीन  घंटे या उससे ज्यादा समय व्यतीत करते हैं टीवी या कम्प्युटर पर . यह सर्वेक्षण किया है विश्व स्वास्थ्य संगठन ने . इसमे यह भी पता चला की अमीर देशों या गरीब देशों में कोई अन्तर नहीं है .
यह सर्वेक्षण अमेरिका, एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व के देशो में 2003 से 2007 के बीच किया गया . 
इस परीक्षण में उपयुक्त शारीरिक गतिविधि का मापदंड था रोज एक घंटे व्यायाम वह भी जिम क्लास के बाहर और कम से कम पाँच दिन एक हफ्ते में . इस मापदंड में 25 प्रतिशत लड़के और 15 प्रतिशत लड़कियाँ  ही टिक पायी .
वे बच्चे जो तीन या ज्यादा घंटे टीवी, कम्प्युटर या विडियो गेम में रोज खर्च करते हैं उन्हे सुस्त की श्रेणी में रखा गया . 25 %लड़के और 30 % लड़कियाँ सुस्त की श्रेणी में पायी गयी .
उरागुए  में सबसे अधिक 42% और ज़ाम्बिया में सबसे कम 8 % लड़के उचित श्रेणी में पाये गए . 
भारतीय लड़कियाँ सबसे आगे पायी गयी 37% के साथ जबकि इजिप्ट 4% के साथ सबसे पीछे .
म्यांमार के बच्चे सबसे कम सुस्त पाये गए 13% लड़के और 8% लड़कियाँ इस श्रेणी में पाये गए .
सबसे सुस्त बच्चे St. Lucia and the Cayman Islands में पाये गए 58% लड़कों और 64% लड़कियों के साथ .
यद्यपि इस सर्वेक्षण में इस सुस्ती के कारणों का पता नहीं लगाया  गया लेकिन ऐसा अदाज लगाया गया है की शहरीकरण और साथ ही साथ टीवी और यातायात के यंत्रिक साधन इसके लिए जिम्मेदार हैं . ऐसा माना गया की स्कूल अपने पाठ्यक्रम  में शारीरिक गतिविधि को प्रोत्साहन देकर इस समस्या  को दूर कर सकते हैं साथ ही उन्हे व्यायाम का महत्व भी समझाया  जाना चाहिए .
साइकल यातायात के लिए अलग से लेन और अन्य व्यवस्थाएँ करके इसे ठीक किया जा सकता है .
इस समस्या के ओर उचित एवं गहन ध्यान देने की बात पर भी ज़ोर दिया गया है 

गुरुवार, 25 मार्च 2010

बच्चो के सामने क्या न करें

बच्चे  अपने  अभिभावक  की नकल करते हैं . इसलिये  उन्हे सावधान रहना चाहिए की वे  कैसा व्यवहार उनके सामने करते हैं . जिन घरों में मार पीट और दुर्व्यवहार सामान्य है उस घर के बच्चे  भी ज्यादातर ऐसा  करते हैं . ऐसा माना जाता है की बच्चे का पहला  स्कूल  घर ही होता है , इसके बाद सबसे बड़ा प्रभाव स्कूल और सह पाठियों का होता है . इन चीजों से बचा जाना चाहिए 


1. लड़ाई झगड़े  और व्यर्थ  के वाद विवाद से 

2. अपने वयस्क भावों को बच्चों के सामने प्रदर्शित करना . स्नेह प्रदर्शन  एक अच्छा भाव है लेकिन एक सीमा तक.

3. आरोप प्रत्यारोप /कसम खाना

4. हिंसा, स्टंट  और नग्नता के दृश्य , फिल्मों या टीवी पर . और अब इंटरनेट पर 



5.धूम्रपान या नशा  


6. झूठ बोलना या बच्चों का उपयोग करना झूठ बोलने में
 

सौजन्य : टाइम्स ऑफ इंडिया 

बुधवार, 24 मार्च 2010

क्या पार्टी का विधान संविधान से बड़ा है - क्या यही प्रजातन्त्र है ?

हमारा देश संवैधानिक रूप से प्रजातन्त्र है जहाँ व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है , इसी अधिकार के अंतर्गत वह अपने प्रतिनिधि विभिन्न रूपों में चुनता है . यह स्थानीय संस्थाओं से लेकर सर्वोचः लोक सभा तक
लोगों को चुनने के लिए दिया गया है . अब दूसरी ओर राजनैतिक पार्टियाँ हैं जो इन्हे व्हिप के माध्यम से बंधक बना लेती हैं . तो आपका प्रतिनिधि और आपका अधिकार बंधक हो जाता है , ये कैसा प्रजातन्त्र है जहाँ एक अधिकार दूसरे गौण अधिकार के कारण विलोपित हो जाता है ?
राज्य सभा और अन्य उच्च सदनो का निर्माण जिस उद्देश्य से किया गया था उसका भी शायद अपहरण हो गया है.
इसका उद्देश्य था उन गुणवानों या समूहों को प्रतिनिधित्व्व देना जो संख्या में कम हैं और उनके अनुभवो का लाभ देश के विकास के लिया लेना . अब इसका उल्लंघन जब देश का प्रधानमंत्री भी कर रहा हो एक सुदूर प्रदेश से राज्य सभा सदस्य बनकर तो छत्तीसगढ़ से भी वही सदस्य बनेगा जिसे राजनैतिक पार्टियाँ चाहेंगी चाहे उसका इस राज्य से कोई संबंध हो या न हो .

एक अकेले वानर ने मंदिर तोड़े जाने का विरोध किया

आश्चर्यजनक किन्तु सत्य हनुमान जी के मंदिर को तोड़े जाने का एक वानर ने विरोध किया . यह घटना कर्नाटक के कोलार क्षेत्र की है . यह मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है . सड़क चौड़ी करने के लिए जब प्रशासन ने कार्यवाही प्रारंभ की तो यह वानर मंदिर के द्वार पर आकर खड़ा हो गया . ऐसा कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण 20 वर्ष पूर्वे हुआ था . हनुमान जी की प्रतिमा के नीचे एक वानर का शरीर दफ़न है ऐसा भी कहा जाता है .

कृष्णप्पा नाम के एक स्थानीय व्यक्ति का कहना है की पहले तो इसने चुपचाप विरोध किया द्वार पर खड़े हो कर, लेकिन जब तोड़ने वालों ने ध्यान नहीं दिया तो वानर ने वार कर दिया .

लोगों का कहना है की इसके पहले इसने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया . लोग अब इसकी पूजा हनुमान जी के रूप में कर रहे हैं





सोमवार, 15 मार्च 2010

देश के पुरुष नेताओं ने लिंग परिवर्तन कराने का निर्णय लिया

महिला आरक्षण के असर से चिंतित नेताओं की एक सर्वदलीय बैठक हुई . जिसमे इस विधेयक का आगे पुरजोर विरोध करने का निर्णय लिया गया . दो बड़ी पार्टियों के एकजुट होकर इस निर्णय से परेशान नेताओं ने एक और प्रस्ताव पास किया की अगर यह आरक्षण आ ही गया तो अपनी रोजी रोटी बचाने के लिए उनके पास लिंग परिवर्तन के अलावा अन्य कोई और रास्ता नहीं है .

छत्तीसगढ़ के काँग्रेस नेता चरणदास महंत ने उन्हे पूरा सहयोग देने का आस्वाशन दिया है . यहाँ यह ध्यान  देने वाली बात है की श्री महंत किन्नरों की संस्था के सरक्षक हैं .उन्होने छत्तीसगढ़ के विख्यात प्लास्टिक सर्जन से भी बात कर ली है जो इस काम में महारत रखते हैं . नेताओं को महंत ने विश्वास दिलाया है की उन्हे इस ऑपरेशन में ज्यादा से ज्यादा छूट दिलवाई जाएगी एवं राजकीय सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी . यह जानकारी मिलने पर नेताओं ने चैन के साँस ली है .



सौजन्य : नवभारत रायपुर

रविवार, 14 मार्च 2010

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आज स्‍वास्‍थ्‍य ठीक नहीं है। रात से बदन दर्द कर रहा है। हल्‍का बुखार भी है। गतिविधि आंशिक ही रहेंगी।
2 people liked this - Dr. Mahesh Sinha and Prakash Khadilkar
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI - क्या हुआ सर ?
आशा है जल्द ठीक हो जायेंगे ! भले और चंगे भी !
Mar 12
Dr. Prem Janmejai - zaankar chinta huee, abhi to mahila bill pass hona hai, zaldi swasth hon, aap jaiose log sakriya hi achhe lagate hain bimari aap Mehangaee ko saunp denMar 12
rashmi ravija - ohh...doctor ki rai lijiye aur aaram kijiye...Get well soonMar 12
Dineshrai Dwivedi - पंडित जी! दवा लें और आराम करें।Mar 12
partap sehgal - main Prem bhai ki baat ki taaeed karta hoon. akshrasha.Mar 13
Mayur Dubey - टेंशन मत लें, आपको कुछ नहीं होगा , इस मौके का फायदा उठाते हुए सिर्फ आराम करेंMar 13
Pramendra Pratap Singh - दवा दे और आराम फरमाऍंMar 13
Yashwant Singh - आपकी नई पोस्ट का लिंक अपने मेल पर आने से वंचित रहूंगा, इसकी खुशी है. आपके स्वास्थ्य खराब होने पर दुख है...Mar 13
Pramendra Pratap Singh - @ Yashwant Singh

हा हा हा
Mar 13
AMIT TYAGI - kya hua bade bhai....sewa ka moka dijiyeMar 13
अविनाश वाचस्पति - मैं स्‍वस्‍थ परंतु ब्रॉडबैंड का स्‍वास्‍थ्‍य खराब :-( सर्वर लड़खड़ा रहा है लगता है पिए हुए है11:48 am
Dineshrai Dwivedi - डाक्टर ने आप को जो दवा पीने को दी थी उसे ब्रॉडबैंड को तो नहीं पिला दिया?11:51 am
Vivek Rastogi - शीघ्र स्वस्थ हों हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।3:09 pm
Vivek Rastogi - चूहे वाले अचार का तो कोई हाथ नहीं है न ?3:09 pm
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पांच किलो अचार में ढाई सौ ग्राम का गला हुआ चूहा मिला। आपकी प्रतिक्रिया ...
1 person liked this - prithvi .
Prashant Priyadarshi - फ्री में नान वेज खाने को मिल रहा है फिर भी एतराज, सच में कलयुग है महाराज.. :P12:20 pm
prithvi . - aap kya ek kilo ka chuuha chah rhe they!1:41 pm
Vivek Rastogi - अचार की शीशी पर क्या लिखा था आम का अचार या चूहे का अचार।3:07 pm
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इतनी बड़ी उम्र की मैडम से प्रेम ..वह भी मिस वेलेंटाईन - शरद कोकास


वेलेंटाइन डे का नाम जब पहली बार सुना तब हम गधा पचीसी की उम्र पार कर चुके थे और बाकायदा इष्ट मित्रों और सम्बन्धियों की उपस्थिति में दोपाये से चौपाये बन चुके थे । दाँपत्य जीवन में प्रेम ,भोजन में रोटी की तरह शामिल था और ज़िन्दगी का मज़ा आने लगा था । तीज-त्योहार पर्व सभी आनन्द से मनाते थे कि जीवन में इस नये पर्व का प्रवेश हुआ । अब तो यह पर्व हमारे जन जीवन में शामिल हो ही चुका है   और जितना इसका विरोध हो रहा है उतना ही यह लोकप्रिय होता जा रहा है । इस पर्व का नाम  पहली बार जानने का भी एक मज़ेदार किस्सा है ।
हुआ यह कि एक दिन  एक बालक आया और मुझसे पूछने लगा “अंकल आपके पास कोई प्रेम की कविता है ?” मैने पूछा “ क्या करोगे , कहीं अपने नाम से छपवाना है क्या ,या स्वरचित काव्य प्रतियोगिता में पढना है ?” अक्सर मेरे पास स्कूल-कॉलेज के बच्चे आते रहते  हैं और स्कूल की कविता प्रतियोगिता ,भाषण प्रतियोगिता आदि के लिये कुछ कुछ सामग्री ले जाते हैं ।उस बालक ने शरमाते हुए कहा “ नहीं अंकल ,उनको... वेलेंटाईन को देना है ।“ वह कॉंवेंट में पढता था । मुझे लगा उसके यहाँ कोई वेलेंटाइन नाम की मैडम होगी जिनकी कविता आदि में रुचि होगी । अपनी साहित्यिक बिरादरी में एक और साहित्यप्रेमी जुड़ जाये यह सोचकर मैने उससे कहा “ ऐसा था तो उन्हे भी ले आते ।“ वह फिर शरमा गया और कहने लगा “ नहीं अंकल वह नहीं आ सकती ।“ मैने कहा “ ऐसी भी क्या बात है ..इस बहाने उनसे परिचय हो जाता , वे कविता वगैरह का शौक रखती हैं शायद ।“ वह पहले से ज़्यादा शरमा गया फिर कुछ हिम्मत जुटाकर बोला “ अंकल दरअसल मै उन्हे सरप्राइज़ देना चाहता हूँ । आपकी कविता के बहाने उनसे कहना चाहता हूँ कि मैं उनसे प्यार करता हूँ ।
मैडम से प्यार ..। मेरी नज़रों के सामने “ मेरा नाम जोकर “ का राजू घूम गया । मैने मन ही मन सोचा इतने बरसों बाद भी इस फिल्म का समाज में यह प्रभाव है । मैने गम्भीर होकर उससे कहा .. “ देखो बेटा .. यह प्रेम – व्रेम करने की उम्र नहीं है ,चुपचाप अपनी पढ़ाई में ध्यान दो । “ वह रुआँसा हो गया और कहने लगा ठीक है अंकल मैं उन्हे गुलाब का फूल ही दे दूंगा । मुझे लगा था कि उस पर मेरी बात का असर हुआ है लेकिन यह क्या ..यह तो मेरी कविता के बदले फूल देने पर उतारू हो गया है । मैने कुछ नर्म होकर कहा ..” ठीक है बेटा ..लेकिन इतनी बड़ी उम्र की मैडम से प्रेम ? और वह भी मिस वेलेंटाइन ..।
अब लड़के के पेट पकड़ पकड़ कर हँसने की बारी थी । बहरहाल उसने सब कुछ स्पष्ट किया ।पता चला कि वह हमारे ही एक कवि मित्र की बेटी थी और यह बालक कविता के बहाने उसे प्रभावित करना चाहता था ।बातों बातों में  हमने भी पता लगाया कि यह पर्व क्या है और क्यों मनाया जाता है आदि आदि । ज्ञात हुआ कि किन्ही संत वेलेंटाइन के नाम से यह पर्व मनाया जाता है । हमने सोचा हो सकता है , हमारे यहाँ भी तो संतों ने मनुष्यों को प्रेम का ही सन्देश दिया है । यह बात अलग है कि हम उनके नाम से प्रेम के नहीं धर्म के उत्सव मनाते हैं । अब प्रेम का यह उत्सव किसी विदेशी संत के नाम से ही सही ।
अब हर साल वेलेंटाईन डे पर यह किस्सा याद आता है और हम सबको सुनाते है । तो इस साल यह किस्सा आपने सुन लिया । सोचा था अपना कोई किस्सा सुनायेंगे लेकिन अब धैर्य नहीं है ..सो अगले साल । एक रेडीमेड कविता है ..जो कुछ साल पहले लिखी थी वही प्रस्तुत कर रहे हैं ..इससे ही आप बहुत कुछ समझ जायेंगे ।


                        वैलैनटाइन डे
 
उपहार में दी जाने वाली
नाजुक वस्तुओं के साथ
अपेक्षाएँ जुड़ी होती है
जो कभी नहीं टूटती

जेबखर्च से पैसे बचाकर
खरीदा गया  चीनी मिट्टी का गुलदस्ता
प्लास्टर ऑफ पेरिस की कोई मूरत 
लाख की एक कलम
पालिश किया हुआ कोई कर्णफूल
पत्थर जड़ी नाक की लौंग 
या काँच की चूड़ियाँ

किसी को सौंपते हुए
मन कांपता था
कहीं कुछ टूट न जाये
चटख न जाये कहीं कुछ
कोई खरोंच न आ जाये

बरसों बाद भी
खत्म नहीं होती अपेक्षाएँ
शुभकामनाओं की तरह
अल्पजीवी नहीं होती अपेक्षाएँ
पलती रहती हैं 
समय की आँच में 
पकती रहती हैं 

पगलाया सा  घूमता है 
एक बेबुनियाद खयाल 
जस की तस रखी होगीं
सभी चीजें उसके पास

और तो और
हमारा दिया सुर्ख़ गुलाब का फूल भी
कहीं न कहीं रखा होगा
किसी किताब के पीले पन्नों के बीच ।

                        शरद कोकास 

( कविता मेहरुन्निसा परवेज़ की पत्रिका "समरलोक" से व चित्र गूगल से साभार )

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