बुधवार, 19 मई 2010

सही कहा है की कानून अंधा है और दुनिया गोल है

बात हो रही है एक आतंकवादी को मौत की सजा देने की . वैसे तो कई लोग इस सजा से बचने के लिए राष्ट्रपति के सामने दया के भीख माँग रहे हैं . राष्ट्रपति कोई फैसला कई सालों से नहीं ले रहे . क्योंकि वे फैसला लेते नहीं . देश का सर्वोच्च न्यायालय एक अंतिम सजा एक अपराधी को सुनाता है . बाकी सजायें तो अपराधी को भुगतनी पड़ती हैं लेकिन मृत्युदंड में एक आखरी अपील राष्ट्रपति के पास जा सकती है . यह प्रावधान एक राजशाही के प्रावधान के रूप में रखा गया है . जब राजा को फैसला लेना है तो अपने दरबारियों से सलाह लेगा . तो फ़ाइल जाती है गृह मंत्रालय के पास जो उसे राज्य सरकार के पास भेज देती है राज्यपाल के द्वारा .एक लाइन लग गयी फ़ाइल की और इसे इसी रास्ते से वापस लौटना है . शीला दीक्षित एक दिन कहती हैं उन्हे कोई फ़ाइल नहीं मिली दूसरे दिन फ़ाइल  वापस उप राज्यपाल के पास पहुँच जाती है 4 साल बाद ! अभी भी शीला दीक्षित को कुछ नहीं पता . पत्रकारों से इतना नाराज होती हैं कि उनपर ही रोक लगाने की माँग कर देती हैं .
सामान्यतः यह फ़ाइल  उस राज्य को भेजी जाती है जिस राज्य का वह निवासी होता है . यह फ़ाइल  कश्मीर भी भेजी जाती है ? क्योंकि अपराधी वहाँ का मूल निवासी है . मुख्य बात जो निकाल के आ रही है इस कथा में कि ये सब किया इसलिये जाता है यह जानने के लिए कि इस फाँसी से उस राज्य में क्या असर पड़ेगा !!!!!!!!!!!!!!!!!????????????.
क्या अपराधी बहुत सांमर्थ्यवान हैं तो उसे यह सजा नहीं दी जाएगी ?
इस बात की nuisence value कितनी है इस पर यह सजा निर्भर करेगी .
फारूख अब्दुल्ला के विचार इस बारे में - इस व्यक्ति का नंबर 30 पर है तो बाकी 29 का फैसला होने दो फिर देखेंगे !!!!!!!!

आम आदमी का कोई माई बाप नहीं है
अगर आप रसूखदार आतंकवादी हो तो कोई माई का लाल आपको कुछ नहीं कर सकता
यही नीति इस देश में आजकल आफ्नै जा रही है हर संगठित अपराधी गिरोहों के साथ

पूर्व गृह मंत्री का एक बयान था - हम एक को सजा देंगे वो कई को
चूड़ी पहन लो

9 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

jwalant aur sateek baat kahi...choodi pehenne ka waqt aa gaya hai...

honesty project democracy ने कहा…

दरअसल कानून अँधा नहीं कानून के रखवालों के पास आँख नहीं है और वो इतने भ्रष्ट हो चुके हैं की उनकी बुद्धि काम नहीं करती है सिवाय अय्यासी और हरामखोरी के /

अनुनाद सिंह ने कहा…

राष्ट्रपति का यह अधिकार ही हटा दिया जाना चाहिये। जब दस न्यायालयों से होते हुए उच्चततम् न्यायालय में मामला आता है तो इसके बाद किसी रबर के स्टैम्प के आगे इसे जाने की जरूरत क्यों?

भारत में राष्ट्रपति और राज्यपालों का पद ही फालतू हैं। इन्हें हटाने से देश का बहुत लाभ होगा।

36solutions ने कहा…

खेल है यह राजनीति का.

Unknown ने कहा…

पहले तो ये लोग आतंकवादी को सजा होने ही नहीं देते सजा हो जाने पर नय-नय तरीके ढूंढते हैं आखिर क्यों
क्योंकि ये खुद गद्दार हैं।
देखो तो जरा कशमीर में पाक किस तरह ये लोग सैनिकों के हाथों वांधकर उन्हें मुसलिम आतंकवादियों के हाथों मरवा रहे हैं व दक्षिण भारत में माओवादी आतंकवादियों से
अगर जानना चाहते हो इन गद्दारों के सरदार के वारे में तो आओ हमारे वलाग पर

Unknown ने कहा…

पहले तो ये लोग आतंकवादी को सजा होने ही नहीं देते सजा हो जाने पर नय-नय तरीके ढूंढते हैं आखिर क्यों
क्योंकि ये खुद गद्दार हैं।
देखो तो जरा कशमीर में पाक किस तरह ये लोग सैनिकों के हाथों वांधकर उन्हें मुसलिम आतंकवादियों के हाथों मरवा रहे हैं व दक्षिण भारत में माओवादी आतंकवादियों से
अगर जानना चाहते हो इन गद्दारों के सरदार के वारे में तो आओ हमारे वलाग पर

Unknown ने कहा…

पहले तो ये लोग आतंकवादी को सजा होने ही नहीं देते सजा हो जाने पर नय-नय तरीके ढूंढते हैं आखिर क्यों
क्योंकि ये खुद गद्दार हैं।
देखो तो जरा कशमीर में पाक किस तरह ये लोग सैनिकों के हाथों वांधकर उन्हें मुसलिम आतंकवादियों के हाथों मरवा रहे हैं व दक्षिण भारत में माओवादी आतंकवादियों से
अगर जानना चाहते हो इन गद्दारों के सरदार के वारे में तो आओ हमारे वलाग पर

कुमार राधारमण ने कहा…

नीयत साफ न हो और न जनता के पास ऐसी बातों का हिसाब लेने की फुरसत हो,तो यही होता है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सजा न देना लोकतन्त्र का आश्चर्य ही है ।