गुरुवार, 25 जून 2009

जीवनसाथी डॉट कॉम

याहू और अन्य साईट पर इस संस्था के विज्ञापन साइड में आते रहते हैं । एक दिन नजर पड़ी तो एक अजीब बात दिखाई दी । नाम के साथ मराठी , गुजराती, कन्नड़ इत्यादि तो दिखा कुछ के नीचे हिंदू दिखाई दिया , नाम से तो सभी हिंदू लग रहे थे अब ये कैसा विभेद ?

रविवार, 21 जून 2009

क्या होगा ब्लॉग लिखकर ?

ज्यादा समय नही हुआ मुझे इस ब्लॉग की दुनिया में । आगमन हुआ काफी उत्साह और और शुभकामनाओं सहित । आज पता नही क्यों लगा इतने सक्षम लोग इतना कुछ लिख रहे हैं, हर क्षेत्र से , लेकिन हिन्दी ब्लॉग की पहुँच है कितने लोगों तक ? केवल कुछ हजार लोगों तक ! जिस भाषा को समझने बोलने वालों की संख्या अरबों में हैं उनमे हजारों से होगा क्या । क्या हम सिर्फ़ अपनी भावना कुछ मुट्ठी भर लोगों तक पहुँचा कर अपने उद्देश्य में सफल हैं या फिर ये एक सिर्फ़ भड़ास निकलने का माध्यम भर रह गया है । भड़ास निकालना भी एक अच्छी चीज है स्वास्थ्य के लिए इससे अन्दर का बवंडर कम होता है और शरीर और दिमाग स्वस्थ रहता है ।
कई लोगों के लिया यह अपनी प्रतिभा के प्रस्तुत करने का अच्छा माध्यम भी है । परन्तु ब्लॉग जगत का सबसे महत्वपूर्ण अंग मेरी समझ के अनुसार एक अच्छी सामाजिक और राजनैतिक सोच का निर्माण करना है । हिन्दी ब्लॉग में कुछ ऐसे गुण भी हैं जो अन्य भाषाओं में नही मिलेंगे लेकिन अंततोगत्वा संख्या बहुत महत्वपूर्ण है ।
अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के ब्लॉग से हम कोशों दूर हैं संख्या और विमर्श में । इसका एक कारण हमारा भावनात्मक होना भी हो सकता है । आज हिन्दी के जानकार लोगों का कंप्यूटर उपयोग कम नही है लेकिन इसे एक दिशा ग्रहण करने की आवश्यकता है .

मंगलवार, 16 जून 2009

ई मेल, मेल या फीमेल

आजकल इन्टरनेट, ई मेल, चैट, एस एम् एस काफी चर्चित और जाने माने शब्द हैं । इनमे से एक है ई मेल । लोग अपना एक ई मेल पता तो बनवा लेते हैं और बांटते भी रहते हैं लेकिन मुड़ के भी उधर नही झांकते । इस तरह के लोगों में बड़े बड़े नाम स्समिल हैं । आज हर सरकारी संस्थान के प्रमुखों के पास यह सुविधा है किंतु जवाब पाने की उम्मीद न रखिये क्योंकि या तो इसका उपयोग नही होता या ये बंद मिलेगी ।
हर सांसद और विधायक के पास कंप्यूटर इन्टरनेट और ई मेल है लेकिन उपयोग ?
यही अवस्था सरकार के अन्य तंत्रों की है । प्राइवेट संस्थान, समाचारपत्र , चिकित्सक व अन्य भी इस से परे नही हैं। ई मेल रखने के कुछ स्वयम नियंत्रित नियम हैं लेकिन यहाँ किसको पड़ी है नियम कानूनों की । ई मेल का जवाब एक समय से दिया जाना चाहिए । जवाब देते समय रोमन में छोटे फॉण्ट का उपयोग होना चाहिये, अन्य अन्य

शुक्रवार, 12 जून 2009

अबूझमाड़ के द्वार खुले

अबूझमाड़ बस्तर का वह क्षेत्र है जिसे आम आदमी के लिए ३० साल पहले बंद कर दिया गया था। कारण कई बताये गए लेकिन मुख्य मुद्दा इस क्षेत्र में रहने वालों की सभ्यता को दुनिया की बुरी नजरों से बचाना था । यह वही जगह है जो अपनी घोटुल परम्परा के लिए विश्व विख्यात है । इस परम्परा को ग़लत रूप से ज्यादा प्रचारित किया गया । प्रश्न ये है क्या इस व्यवस्था ने जिसने इन्हे बाकी दुनिया से काट दिया इनका क्या भला किया । बाकी लोग तो दूर रहे नक्सलियों ने इसे अपना गढ़ बना लिया । आज यह इलाका इनका मुख्य केन्द्र है बस्तर में ।
आज भी कुछ लोग इसे खोलने के निर्णय का विरोध कर रहे हैं , जाहिर है उनका क्या उद्देश्य है ।
प्रश्न ये है की क्या आदिवासियों को उनके जीवन दर्शन से दूर किया जाना चाहिए विकास के नाम पर या उन्हें भी पश्चिमी सभ्यता से जोड़ देना चाहिए । उन्हें बाहरी दुनिया से काटकर, बिना किसी सुरक्षा इन्तेजाम के कितना सही था ? इनके लिए तो एक तरफ़ कुआँ और दूसरी तरफ खाई वाली बात हो गई । आदिवासियों और अन्य पिछडे वर्गों के लिए मगरमच्छ के आंसू बहाने वाली पार्टियों के पास कोई जवाब है इसका .

गुरुवार, 4 जून 2009

महिला राज्यम जय हो


हर किसी की आरक्षण की मांग में महिलाएं भी खड़ी हो गई हैं और पुरूष नेता उन्हें झुनझुना दिखा रहे हैं, जबकि एक बड़ी राष्ट्रीय पार्टी की मुखिया एक महिला है उन्हें ये जो स्थान प्राप्त हुआ है उसके बाद तो उन्होंने जहाँतक हो सका मजबूती ही दिखाई है अन्य राष्ट्रीय स्तर की महिला नेताओं ने जो स्थान बनाया है वो भी उनकी एक उपलब्धि है क्या आवश्यकता है उन्हें कटोरा लेकर भीख मांगने की ? उनके पास मत देने का अधिकारहै और अगर वे एक जुट होकर केवल सही उम्मीदवारों का समर्थन करें तो १००% उनके द्वारा चुने हुए लोग ही सत्ता में आयेंगे जिससे केवल देश को ही एक नई दिशा मिलेगी बल्कि बहुत सारे अनावश्यक नेताओं सेछुटकारा मिलेगा इसमे तो कोई विवाद नही हो सकता क्योंकि महिलायों की नजर पारखी होती है .

भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी पाटिल , सरकारी पार्टी की मुखिया सोनिया गाँधी , लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार कई प्रमुख बैंको की मुखिया महिलाएं क्या अभी भी आवश्यकता है महिला आरक्षण की वैसे भी आजकलवैज्ञानिक हलको में चर्चा है की पुरूष और पौरूषता अवनति की ओर हैं और यही अवस्था रही तो पुरूष का सफायाहो जाएगा

मंगलवार, 2 जून 2009

कर्नाटक में राजनीति में सुधार के लिए एक अभिनव प्रयास

बेंगलुरु स्थित एक गैर सरकारी संगठन दक्ष ने एक नया कार्य हाथ में लिया है । चुनाव में चुन कर आए जन प्रतिनिधियों के कार्य की मॉनीटरिंग और उसके बाद उनके परफॉर्मेंस के बारे में एक सालाना रिपोर्ट प्रस्तुत की जायेगी । यह कार्य इस संस्था ने पिछले विधान सभा चुनाव के बाद से प्रारम्भ किया है और इसमे नए सांसदों को भी जोड़ा गया है । अभी कर्नाटक तक सीमित इस प्रयास को आगे पूरे देश में ले जाने की योजना है । इसमे जनता की भी प्रतिक्रिया ली जायेगी । इस संस्था में समाज के विभिन्न वर्गों के लोग जुड़े है । इस रिपोर्ट से ये पता चलेगा की प्रतिनधि ने अपने छेत्र में कितना कार्य किया है । इसमे एक परफॉर्मेंस इंडेक्स भी दिया जायेगा जिससे विभिन्न प्रतिनिधियों के बीच तुलना भी हो सकेगी ।
अगर यह मुहीम सफल होती है तो अवश्य ही देश की राजनीति को एक नई दिशा मिलेगी .