शनिवार, 30 मई 2009

हम कब तक अपनी ऐसी तैसी करवाते रहेंगे

आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों के साथ दुर्व्यवहार और घातक हमलों से हम और हमारी सरकार कब सीखेंगे ? जब हम किसी और देश में जाते हैं वहाँ बसने के उद्देश्य से तो वहाँ के लोग विरोध करते ही हैं । और ऐसा केवल विदेशों में ही नही हमारे यहाँ राज्यों में भी हो रहा है । यह विरोध केवल एक संकुचित मानसिकता का परिचायक ही है । वसुधेव कुटुम्बकम तो शायद केवल लेखन तक ही सीमित रह गया है । लेकिन जब ये मानसिकता तथाकथित विकसित देशों में होती है तो सोचना पड़ता है कि विकास के मायने क्या हैं । क्या समृद्धि, सुविधा और धन ही विकास है या आपकी मानसिकता का विकास ही सच्चा विकास है । क्या एक आदर्श समाज और विश्व की परिकल्पना केवल एक दिवास्वप्न है या इसे वास्तविकता में बदला जा सकता है ?
हमारे जो भी देशवासी विदेश खासकर वहाँ बसने जाने वाले इस बात से भलीभांति परिचित रहते हैं कि उन्हें एक दोयम दर्जे के नागरिक की तरह जीना होगा और अपमान का कड़वा घूँट भी पीना पड़ेगा , इसके बावजूद ये प्रक्रिया जारी है । इसके पीछे क्या सिर्फ़ अर्थ और सुविधा ही जिम्मेदार हैं । हमारी कई प्रतिभाएं उचित अवसर नही मिलने के कारण भी विस्थापित होने को मजबूर हो जाती हैं । कब हमारी व्यवस्था इस बारे में गंभीरता से विचार करेगी । हम अगर एक गरीब और अत्यधिक आबादी के देश हैं तो हमारे यहाँ प्रतिभाओं की भी कमी नही है आवश्यकता है तो सिर्फ़ इस अमूल्य ज्ञान धन को उचित अवसर प्रदान करने की ।
आस्ट्रेलिया की घटना से दुखी होकर अमिताभ बच्चन ने वहां के एक विश्विद्यालय द्वारा प्रदान किए जाने वाला सम्मान ठुकरा दिया है । विदेशों में रहने वाले उच्च स्तिथि प्राप्त भारतीय भी उनका अनुकरण करें तो वे अपनी मातृभूमि के लिए एक आदर्श बनेंगे ।

सोमवार, 18 मई 2009

ठहरिये आप रायपुर की सड़क पार कर रहे हैं

अगर आप रायपुर में रहते हैं तो ये आप जानते हैं कि पैदल चौराहे को पार करना युद्ध जीतने से कम नही है, अगर कभी आप ऐसा करते हैं तो। अगर आप वाहन में घूमते हैं तो कोई बात नही . अगर आप बाहर से हैं तो पूछेंगे क्यों ? इसमे कौन सी बड़ी बात है ! रायपुर में लगभग हर बड़े चौराहे पर यातायात के सिग्नल लगे हुए हैं इनमे पीली बत्ती का प्रावधान भी , किंतु ये पलक झपकते ही बदल जाती है । पदयात्री के लिए यहाँ न कोई सिग्नल है न कोई अन्य प्रावधान । तो होता क्या है रणबाकुरे और बांकुरी जब चाहे निकल पड़ते हैं सड़क पार करने , अपनी जान हथेली में लेकर । दूसरी ओर हरी बत्ती के इन्तेजार के बिना वाहनचालक पीली बत्ती होते ही पिल पड़ते हैं या उससे पहले भी समय और काल देखकर ।इस शहर में मानवधिकार आयोग भी है और संगठन भी लेकिन शायद ये इसका मामला नही बनता ।विदेशों में पदयात्री के लिए सम्मान भी और व्यवस्था भी है , हमारे देश में न जाने क्यों इतना उतावलापन है । जल्दी पहुँचने के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं यहाँ तक की लड़ने को भी । मेरे भाईओं हमारे देश में सेना में लोगों कि काफी जरूरत है, जबकि सब बेरोजगारी का रोना रोते रहते हैं । अगर जान देनी भी है तो देश के नाम पर दें , सड़क दुर्घटना में नही।सिंगापुर में कोई यातायात का सिपाही नही दिखाई देता लेकिन सेंट्रल कंट्रोल से पूरा शहर नियंत्रित रहता है , मजाल है कोई नियम तोड़ दे। पुलिस भी वहां सादी वर्दी में घूमती है ये देखने कि कोई कचरा तो नही फेक रहा है । हमारे पान प्रिय वहां बाकायदा पीक दान ले कर चलते हैं ।

रविवार, 17 मई 2009

हम ब्लॉग क्यों लिखते हैं

कुछ बातें हम अपने सुख के लिए करते हैं स्वान्तः सुखाय। कुछ हम दूसरों के लिए करते हैं परिजन हिताय । ब्लॉग लिखने में भी एक भावना निहित रहती है , जिनमे उपरोक्त दोनों या एक भाव सम्मिलित हो सकता है । इसमे कुछ भाव मित्रता के भी जुड़ जाते हैं , अनजाने दूरस्थ लोगों से परिचय और संवाद । कई लोगों के लिए ये अपनी प्रतिभा को उकेरने का मंच है तो कुछ के ज्ञानवर्धन और श्रोता बनने का मंच । एक कथन है कि अपनी भावनाओं को दबाकर नही रखना चाहिए अन्यथा वह एक विषाद के रूप में भौतिक और मानसिक शरीर को प्रभावित करती है। इसमे लेकिन एक स्वनियंत्रण भी आवश्यक है , अपनी प्रस्तुति ऐसी रहे जिससे कि किसीकी भावना पीड़ित न हो , विचार और शब्द संयत भाषा में हो । ये प्रश्न कई बार उठता है कि गूगल को ब्लॉग पर नियंत्रण रखना चाहिए , क्या ये सम्भव है ? एक साधन आपको उपलब्ध किया गया है , कुछ स्वनिय्न्त्रनो के साथ अब ये आप पर निर्भर है कि आप इसका उपयोग कै़से करते हैं । वैसे गूगल ने ये व्यवस्था भी रखी है कि अगर कोई ब्लॉग आपको अनुचित लगे तो उसकी सूचना आप उन्हें दे सकते हैं । इसमे एक विरोधाभास हो सकता है कई बातें जो हमारी सभ्यता में आपतिजनक हो , उन्हें ऐसा न लगे ।

शुक्रवार, 15 मई 2009

मानवधिकार और नक्सलवाद

आज के अखबार में कल रायपुर में बिनायक सेन के समर्थन में एक रैली निकाली गई की ख़बर छापी अब शायद लोग ये न कह सकेंगे कि छत्तीसगढ़ के पत्रकार बिनायक सेन के विरूद्व हैं । इसमे कई नामचीन लोग शामिल हुए । इनमे से एक जे एन यू के प्रोफ़ेसर डॉक्टर मुख़र्जी भी थे । उनका कहना है "बिना हिंसा के आन्दोलन बेअसर "। अब मानवाधिकार के प्रवर्तकों के ये विचार है तो दुनिया का क्या होगा ? ये सारे लोग एक व्यक्ति के लिए जितना तन मन धन लगा रहे हैं उसमे न जाने कितने गरीबों का भला होता । लेकिन उन्हें इससे क्या मतलब । उन्हें तो अपनी एक सोची समझी मुहीम को आगे बढ़ाना है । मुख़र्जी साहब शायद बहुत सीधे व्यक्ति हैं जिनके मुह से ये सच निकल ही गया कि क्या सोच है उनके संगठन की। और कितना खून बहाना चाहते हैं आप लोग ? मुख्यमंत्री रमन सिंह के इस बयान को भी तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत किया गया जो उन्होंने कुछ दिन पहले दिया था " उन्हें खुशी होगी अगर बिनायक सेन को अदालत जमानत देती है "। उन्होंने कानूनी और मानवीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया लेकिन इसे यू टर्न करार दिया गया !
इस आन्दोलन के बारे में जब मैंने कुछ जानकारी ली तो पता चला , बिनायक सेन के नाम से वेब साईट में केवल समर्थक टिप्पणियां ही ली जाती हैं । एमनेस्टी ने अपने साईट में समर्थन जाहिर किया है लेकिन उन्होंने कुछ प्रश्नों का जवाब नही दिया । प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका लांसेट से जब ये पूछा गया कि उन्होंने किस आधार पर इस सन्दर्भ में लेख छापा तो उन्होंने एमनेस्टी का सन्दर्भ दिया , साथ ही उन्होंने ये भी पूछा कि क्या बिनायक सेन विचाराधीन कैदी हैं ? इन सब बातों से क्या जाहिर होता है ?
हमारी सरकार कब तक इन सबसे आँखे मूंदे रहेगी या किसी दल का इनको आतंरिक समर्थन है ?
हम इस देश को किस और ले जाना चाहते है, विकल्प हमारे आस पास ही हैं - पाकिस्तान, बांग्लादेश , नेपाल, चीन, म्यांमार या श्रीलंका । हमें अपना ये मिथक तोड़ना होगा कि हम बहुत बड़े देश हैं और कोई हमारा कुछ नही बिगाड़ सकता । घर का भेदी लंका ढाये, ये कहावत किसीने अपने पूर्ण अनुभव के बाद ही कही होगी ।
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिश्तां क्या होगा ................

शनिवार, 2 मई 2009

युवा शक्ति

लुधिआना के कुछ अभियांत्रिकी के विद्यार्थियों ने हवा से चलने वाली मोटर साइकिल बनाई है । एक अच्छा प्रयास है ।
वीडेओ देखें : साभार रॉयटर्स

ब्लॉगर दुनिया के रोचक तथ्य 2

जैसा की मैंने अपने पहले ब्लॉग में ही टिप्पणी की है । यह आंकडा बदलता रहता है ? इसका स्त्रोत ब्लॉगर में ही है। जब आप अपना या किसी और का प्रोफाइल देखते हैं तो वहाँ आपका स्थान भी दिया होता है । उसे क्लिक करने पर आपको ये आंकडे मिलते हैं । एक फर्क तो मैंने ये भी देखा कि हिन्दी और अंग्रेजी में अलग आंकडे आते हैं। अलग अलग लोगों का प्रोफाइल एक ही स्थान के होने पर भी ब्लॉगर अलग आंकडा बताता है ! कोई चाहे तो इस पर खोज कर सकता है ।
इसके उपयोग के बारे में जैसा अनिल भाई ने सुझाया आस पास के लोगों को ब्लॉगर सम्मलेन के द्वारा जाना जा सकता है । एक जैसी सोच या पसंद वाले अपना नेटवर्क भी बना सकते हैं ।

ब्लॉगर दुनिया के कुछ रोचक तथ्य

एक छोटी से खोज से ब्लॉगर के सदस्यों के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त हुई है ।
पूरे भारत में ब्लॉगर के सदस्यों की संख्या २८९००० है । नई दिल्ली के नाम से ५७०० रजिस्टर हैं । छत्तीसगढ़ के नाम ये संख्या ११०० और रायपुर के नाम २७२ है । वर्ग क्रमों के अनुसार , ये आंकडा शायद पूरी दुनिया का है । संचार और मीडिया में १९६००० , पत्रकार ७२५००, ट्रांसपोर्ट १५०००० और स्वतंत्र पत्रकार और अनुवादक २ ।

जंगल जंगल बात चली है पता चला है

हे प्रियजनों
नमस्कार
लगता है अनामधारी टिप्पणीकर्ताओं ने एक नया रूप धरा है । अब छद्म नाम की जगह एक वास्तविक से लगते नाम को ब्लॉगर में रजिस्टर करके प्रतिक्रिया व्यक्त करने का । अपना नाम संभाल के रखियेगा कोई चुरा न ले ।
आप ही या कोई तकनीकी व्यक्ति ही सुझा सकता है इसका इलाज । वैसे ये एक मानसिक समस्या भी है , ऐसा क्या भय है की नाम छुपाओ , ग़लत नाम बताओ , फोटो छुपाओ , अपनी जगह चिडिया की फोटो लगा दो । इस संगणक के महाजाल ने न जाने कितनी नई विषमताओं को जन्म दिया है । कवि और लेखक तो अपना नाम बढ़ा कर तख्हल्लुस तक रख लेते हैं की उनकी अलग पहचान बने । ठीक है हर कोई कवि और लेखक तो नही ।