गुरुवार, 27 मई 2010

Beware Admission in Medical College

जैसा की आप सब देख चुके हैं मेडिकल कौंसिल का हाल . अगर आप अपने बच्चे को किसी मेडिकल कॉलेज में भरती करवा रहे हैं तो पूरी जानकारी उस कॉलेज और उसके माहौल के बारे में पता कर लें . नहीं तो बाद में पछताना न पड़े . कुछ बड़े नामी गिरामी प्राइवेट कॉलेज में पैसों और नशे का बड़ा खेल है .
अपनी मेहनत से की हुई कमाई का सदुपयोग करें . नाम के जाल में न फसें 



मंगलवार, 25 मई 2010

तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे

इस देश में और हिन्दी वालों में बहुत सहिष्णुता है यह तो ब्लाग जगत ने जाहिर कर दिया है.
लोगों की भी गलती नहीं है . जिस देश में संघर्ष ही जीवन हो ज्यादातर लोगों के लिए वहाँ और क्या अपेक्षा की जा सकती है किसी भी साधन या मंच के उपलब्ध होने पर .

 अकेला होना और उसे स्वीकार करना एक परम सत्य है . परीक्षा इसी बात की है की कैसे इस भाव को  जीवित रखते हुए परिवार और परिवार में जिया जाए . परिवार का संदर्भ यहाँ निकट के बंधु बांधवों से लेकर सृष्टि के विस्तार तक के संबंधों की बात है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो बहुत कुछ मर चुकी थी इस देश में, उसे कुछ बातों ने नया जीवन दिया है जिसमें ब्लाग भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है . एक आम आदमी का मंच , उसके विचार उसके अपने ही रूप में . उसकी क्या सोच है , व्यथा है , उपाय भी छुपे हैं उसके गर्भस्थल में .

इन सारी और अन्य बहुत सारी बातों और विचारों का उपयोग इस मानव जीवन को पुष्पित पल्लवित करने में लगाया जा सकता है . विवाद या युद्ध तभी होता है जब सीमा का उल्लंघन होता है . आम आदमी के लिए ये सीमाएँ असीम हैं . कभी भी किसी को भी कोई भी बात चोट पहुँचा सकती है . इससे कैसे बचें . दो बातें हो सकती हैं  पहली ऐसी कोई बात न कहें जो खुद को भी किसी और  के द्वारा कहे जाने पर अच्छी न लगे और दूसरी अपनी बात रखें स्वान्तः सुखाय के लिये .

हास परिहास और व्यंग भी आवश्यक हैं . बल्कि अगर यह एक नियत दिशा में सीमित रहें तो बहुत अच्छे गुण हैं विकास और उल्लास के .

कुछ विचार आते गए और की बोर्ड पर चलते गए .
पता नहीं तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे :)

सोमवार, 24 मई 2010

एक चपरासी की भी मेडिकल जाँच होती है नौकरी पाने के लिए

मेरे इस पोस्ट का मन्तव्य किसी वर्गीकरण से नहीं है , चपरासी शब्द  केवल उदाहरण के लिए प्रयुक्त है

इस देश में हर चीज पर कुछ न कुछ प्रतिबंध या आवश्यक योग्यता निर्धारित है .
विवाह की कानूनी सीमा , उम्र के हिसाब से.
स्कूल/कॉलेज  में न्यूनतम और अधिकतम उम्र सीमा.
हर तरह की  सरकारी नौकरी में भी न्यूनतम और अधिकतम उम्र सीमा .
हर जगह चिकित्सा जाँच भी होती है ?
हर जगह गति अवरोधक लगे हैं .





एक जगह को छोडकर  " राजनीति "
सार्वजनिक राजनीति में 18 वर्ष के होते ही संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं . इसके बाद कोई भी किसी भी प्रकार  का अवरोध नहीं है न उम्र का न शिक्षा का न स्वास्थ्य का  . राजनीति का  प्रशिक्षण भी स्कूल कॉलेज से शुरू हो जाता है . खुद को क्या सुविधा मिलनी चाहिए ये भी स्वयम निर्णीत होता है . और किसी सरकारी सेवक को 1 दिन की नौकरी पर पेंशन नहीं मिलती जबकी ये जन सेवक हैं इन्हे यह सुविधा उपलब्ध है  ? खुली बंदरबांट है .

जहाँ सबसे ज्यादा कड़ी जाँच होनी चाहिए वहीं कोई नियंत्रण नहीं . कौन आपके राज्य या देश को चलाएगा उसपर कोई रोक टोक नहीं .

कब होगा आजाद  हमारा देश अंग्रेजों के बनाये दासता कानूनों से ?

क्या यही है मेरा भारत महान

जय हो जय हो गाते रहो (जनता)
चैन की बंशी बजाते रहो (नेता)

गुरुवार, 20 मई 2010

विश्वस्तरीय निशुल्क चिकित्सा





पुट्टपर्थी , जिला अनंतपुर , आंध्रा प्रदेश और व्हाइट फील्ड बेंगलुरु  स्थित इस संस्थान में निशुल्क चिकित्सा एवं आपरेशन किए जाते हैं . यहाँ लगभग  सभी सुपर स्पैशलिटी में उपचार उपलब्ध है .
इन अस्पतालों में दवाई भी निशुल्क दी जाती है .

आधा देश बारूद की ढेर पर बैठा है और यूपीए मनाएगा अपनी वर्षगांठ, कुछ तो शर्म करो

?

बुधवार, 19 मई 2010

सही कहा है की कानून अंधा है और दुनिया गोल है

बात हो रही है एक आतंकवादी को मौत की सजा देने की . वैसे तो कई लोग इस सजा से बचने के लिए राष्ट्रपति के सामने दया के भीख माँग रहे हैं . राष्ट्रपति कोई फैसला कई सालों से नहीं ले रहे . क्योंकि वे फैसला लेते नहीं . देश का सर्वोच्च न्यायालय एक अंतिम सजा एक अपराधी को सुनाता है . बाकी सजायें तो अपराधी को भुगतनी पड़ती हैं लेकिन मृत्युदंड में एक आखरी अपील राष्ट्रपति के पास जा सकती है . यह प्रावधान एक राजशाही के प्रावधान के रूप में रखा गया है . जब राजा को फैसला लेना है तो अपने दरबारियों से सलाह लेगा . तो फ़ाइल जाती है गृह मंत्रालय के पास जो उसे राज्य सरकार के पास भेज देती है राज्यपाल के द्वारा .एक लाइन लग गयी फ़ाइल की और इसे इसी रास्ते से वापस लौटना है . शीला दीक्षित एक दिन कहती हैं उन्हे कोई फ़ाइल नहीं मिली दूसरे दिन फ़ाइल  वापस उप राज्यपाल के पास पहुँच जाती है 4 साल बाद ! अभी भी शीला दीक्षित को कुछ नहीं पता . पत्रकारों से इतना नाराज होती हैं कि उनपर ही रोक लगाने की माँग कर देती हैं .
सामान्यतः यह फ़ाइल  उस राज्य को भेजी जाती है जिस राज्य का वह निवासी होता है . यह फ़ाइल  कश्मीर भी भेजी जाती है ? क्योंकि अपराधी वहाँ का मूल निवासी है . मुख्य बात जो निकाल के आ रही है इस कथा में कि ये सब किया इसलिये जाता है यह जानने के लिए कि इस फाँसी से उस राज्य में क्या असर पड़ेगा !!!!!!!!!!!!!!!!!????????????.
क्या अपराधी बहुत सांमर्थ्यवान हैं तो उसे यह सजा नहीं दी जाएगी ?
इस बात की nuisence value कितनी है इस पर यह सजा निर्भर करेगी .
फारूख अब्दुल्ला के विचार इस बारे में - इस व्यक्ति का नंबर 30 पर है तो बाकी 29 का फैसला होने दो फिर देखेंगे !!!!!!!!

आम आदमी का कोई माई बाप नहीं है
अगर आप रसूखदार आतंकवादी हो तो कोई माई का लाल आपको कुछ नहीं कर सकता
यही नीति इस देश में आजकल आफ्नै जा रही है हर संगठित अपराधी गिरोहों के साथ

पूर्व गृह मंत्री का एक बयान था - हम एक को सजा देंगे वो कई को
चूड़ी पहन लो

चिदंबरम जी देश के गृह मंत्री के पास अधिकार नहीं है तो क्या दिग्विजयसिंग के पास है

देश के गृह मंत्री ने ये बयान दिया की उनके पास सीमित अधिकार हैं . बयानों से तो यही लग रहा है अधिकार दिग्विजयसिंग  के पास हैं . उन्होने कहा था बीजेपी के सेटिंग है नक्सलियों के साथ बीजेपी की बिडिग ज्यादा है .
इसका क्या मतलब है इसका खुलासा करेंगे देशवाशियों के सामने .
कौन है इस देश में सरकार चलाने वाला ?
दिग्विजयसिंग का छत्तीसगढ़ से क्रोध तो समझ में आने वाली बात है क्योंकि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए एक काँग्रेस नेता के घर मार खानी पड़ी थी उनको लेकिन नक्सल समस्या आज किसी राज्य  की नहीं देश की समस्या बन चुकी है .

रविवार, 16 मई 2010

सारे संतरी वीआईपी सुरक्षा में, देश और गरीब जाए भाड़ में

इस देश में सुरक्षित रहना है तो आपको किसी भी टाइप का वीआईपी होना चाहिए . कुछ संवैधानिक वीआईपी हैं तो कुछ उनसे भी बड़े . सरकार की इच्छा होनी चाहिए और मुफ्त सेवा हाजिर . जबकि इनमे से ज्यादातर लोग सक्षम हैं अपनी सुरक्षा व्यवस्था करने के लिए लेकिन जब काम मुफ्त में हो तो बात ही क्या है .

सबसे ज्यादा सुरक्षा चाहिए जन प्रतिनिधि को ! हर सांसद और विधायक को एक गन मैन उपलब्ध है . नगर निगम के महापौरों और अध्यक्षों को भी यह सुविधा प्राप्त है . अधिकारियों और विशेषकर पुलिस अधिकारियों को भी सुरक्षा चाहिए ! न्यायाधीशों को भी सुरक्षा चाहिए . कुछ पत्रकारों को भी यह सुविधा प्रदान की जाती है . फिल्म अभिनेता, खिलाड़ी, कलाकार . अंतहीन है यह सूची . जिस देश के कर्णधार असुरक्षित समझते  हैं अपने को  और अपने बिल में दुबके रहते हैं उस देश का क्या होगा ?

ज्यादातर पड़ोसी देश आपके दुश्मन हैं क्यों . और उनने देश के अंदर भी घुसपैठ कर ली है . बड़ी मुश्किल से सोनिया गांधी के शब्द बाहर निकले की हमारी व्यवस्था की कमजोरी है की आदिवासियों और गरीबों तक विकास योजनाएँ नहीं पहुँच पा रही है इसलिये नक्सल समस्या पैदा हुई है . सोनिया जी , ये तो बहुत पहले राजीव जी कह गए थे लेकिन किसीकी कानो में जूँ रेंगी क्या . उल्टे लाख करोड़ का घपले का इल्जाम आपके मंत्री पर ही लगा है . जब आप वहीं चोर नहीं पकड़ पा रही हैं तो आखरी छोर का क्या होगा

आम आदमी न घर में सुरक्षित है न बाहर . सबसे असुरक्षित स्थान हैं बस अड्डे और रेल्वे स्टेशन . कुली से लेकर औटो और टॅक्सी चालक तैयार रहते हैं आक्रमण के लिए . ज्यादा दिन आप घर से बाहर रहे तो उसपर भी कोई कब्जा कर लेगा .

कहने को कहा जाता है जनता की सरकार है . जाइए कोई भी चीज जो किसी सरकारी संस्था के अधीन है उससे वह काम आसानी से करके तो दिखाईये चाहे वह रैशन कार्ड हो, ड्राइविंग लैसेंस , गैस या बिजली का कनेक्शन हो.

आम आदमी का तो कोई माई बाप नहीं है

गुरुवार, 6 मई 2010

एके 57 का लाइसेंस कहाँ मिलेगा

कुछ लोगों से पूछताछ की भाई ये 47 या 56  रसूखदार असला है इसका लाइसेंस कहाँ मिलेगा ?
जानकार लोगों ने बताया की ये तो मिल ही नहीं सकता .
हमने कहा काय बात करते हो . हर बड़े आदमी के आस पास यह हथियार दिखाई दे जाता है .
उनका कहना था बात तो सही है लेकिन लाइसेंस नहीं मिलेगा
हमने पूछा तो ये सारी सुरक्षा गैर कानूनी है ?
उसने कोई जवाब नहीं दिया .

हर कानूनी और गैर कानूनी अपराधी के पास  यह हथियार है .
लेकिन आपको नहीं मिल सकता . आप तो अपनी सुरक्षा तमंचे से करो या  ...............?

सोमवार, 3 मई 2010

गूगल ने "चड्डी पहन के फूल खिला है" पुरस्कार विजेताओं की घोषणा की

गूगल ने अंतराष्ट्रीय भाई चारे की मिसाल पेश करने और बज को उसके अंजाम तक पहुँचाने वालों को सम्मानित करने की घोषणा की  है .
इस पुरस्कार में कोई पहला दूसरा स्थान नहीं है . गूगल ने दरियादिली दिखाते हुए इस मुहिम का विरोध करने वालों को भी सम्मानित किया है .

यह सम्मान "चड्डी पहन के फूल खिला है"$  कहलाएगा

इस सम्मान के बराबर के हकदार  हैं *:


आराधना चतुर्वेदी "मुक्ति"
Praveen Pandey
अजित वडनेरकर
Dr. Mahesh Sinha
Sanjeet Tripathi
Saagar Saagar
Rajeev Nandan Dwivedi
Pankaj Upadhyay
Stuti Pandey
Sameer Lal
पद‍्म सिंह
Prashant Priyadarshi
श्रीश पाठक (Shreesh K Pathak)

Anand G.Sharma आनंद जी.शर्मा
अविनाश वाचस्पति
sarwat jamal
Vivek Rastogi
HIMANSHU MOHAN
SANGITA PURI
rajesh swarthi
sanjay tiwari
Tarun J
Mukul Srivastava
Jitendra Chaudhary
Rakesh Jangalwa
kamlesh verma
Dr. Vijay Tiwari
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
Gajender Bisht
indu puri goswami
ajay jha
Sagar Nahar

भूल चूक लेना देना

* अगर किसी प्रतियोगी का नाम छूट  गया हो तो सूचित करें
$ प्रतिभागी इसे ही कापी करके पुरस्कार ग्रहण करें

रविवार, 2 मई 2010

गूगल ने हाथ खड़े किए , उसकी औकात पता चल गयी

गूगल ने कुछ समय पहले बज नामक सुविधा प्रारंभ की थी .तब और अब तक यह नहीं घोषित किया गया था की इसकी कोई शब्द सीमा है . पिछले कुछ दिनो में उसने दो बज को ब्लाक कर दिया और दिखाया यह जा रहा है की बज प्रारंभ करने वाले ने ऐसा किया है .
ब्लाग में भी ऐसी कोई सीमा है तो उसके  बारे में जानकार लोग बताएंगे . मेरी जानकारी में तो नहीं है की स्थान के अभाव में कोई ब्लाग ब्लाक किया गया है
देखिये उन दो बज को जो ब्लाक हो गए याने इनपर कोई टिप्पणी अब नहीं दी जा सकती . केवल पसंद का चटका लगाया जा सकता है .

पहला बज है पंकज उपाध्याय का 

इस बज़ को अपने अपने अजायबघर मे सजाने के लिये ये लिन्क देखे:

Buzz by Pankaj Upadhyay

दुसरे लम्बर पे है हरदिल अजीज समीर लाल "समीर" का बज  



सोच क्या रहे हैं खुद देखें 
"हाथ कंगन को आरसी क्या 
पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या "