रविवार, 13 फ़रवरी 2011

सरकार, नक्सलवाद और बिचौलिये


अगर आप किसी बात का विरोध नहीं करते तो इसका अप्रत्यक्ष मतलब यही है की उस बात या विश्वास का आप समर्थन कर रहे हैं । यही अंतर है देशभक्ति और देशद्रोह में ।

इस देश की सबसे बड़ी विडंबना यही लगती है की इस नए माध्यम(ब्लॉग या बज) का उपयोग देश और जनकल्याण के लिए करने के बजाय और कुछ रूप में किया जा रहा है ।

हर जगह राजनीति नहीं होनी  चाहिये  लेकिन हो यही रहा है । इंसान की जान के सौदे हो रहे हैं और लोग या तो इन दुर्दांत घटनाओ का समर्थन कर रहे हैं या चुप हैं ।

इस देश में क्या कभी कोई क्रांति हो सकती है या हर बात में सौदेबाजी होगी

विनायक सेन पर एक विचार


सौजन्य : नवभारत , रायपुर 

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

वास्तव में हमारा चरित्र क्या है

इसे अन्यथा न लें

तिरिया चरित्रम पुरुषश्य भाग्यम
देवो न जानती .............

यह लोकोक्ति कहाँ से और कैसे उपजी इसके बारे में तो इतिहासकार ही बता सकते हैं ।

तुलसीदास भी कुछ भ्रम निर्मित कर गए ;
ढोंर गवार शूद्र पशु नारी ये सब तारण के अधिकारी । इसकी व्याख्या लोग अलग अलग करते हैं ।

अभी तक जो कहा गया वह इतिहास है

लेकिन वर्तमान में भी हम क्या कर रहे हैं

सबको मालूम है और ज़्यादातर लोग भ्रष्टाचार कर रहे हैं और बड़ी बड़ी संस्थाएं चुप बैठी हैं ।

इस व्यवस्था को जन्म देने के लिये क्या हम सब जिम्मेदार नहीं हैं ?

भय के बिना प्रीति नहीं होती - जब तक ऐसा कानून नहीं होगा जो भ्रष्टाचार को सबसे बड़े अपराध की श्रेणी में रखे , सब ऐसा ही चलता रहेगा ।

बूंद बूंद से घड़ा भरता है , घड़े को भरने से रोकने के लिए बूंद को रोकना  होगा ।

सबको पता है कहाँ से यह शुरू होता है और कहाँ खत्म ।

अब यह देश की जनता पर ही निर्भर करता है की वह अपने बारे में क्या चाहती है ।

स्कूली साक्षरता भले ही नहीं आई हो सरकारी हिसाबों में

इस देश की जनता अब सब समझती है ।

जय हिन्द