मंगलवार, 25 मई 2010

तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे

इस देश में और हिन्दी वालों में बहुत सहिष्णुता है यह तो ब्लाग जगत ने जाहिर कर दिया है.
लोगों की भी गलती नहीं है . जिस देश में संघर्ष ही जीवन हो ज्यादातर लोगों के लिए वहाँ और क्या अपेक्षा की जा सकती है किसी भी साधन या मंच के उपलब्ध होने पर .

 अकेला होना और उसे स्वीकार करना एक परम सत्य है . परीक्षा इसी बात की है की कैसे इस भाव को  जीवित रखते हुए परिवार और परिवार में जिया जाए . परिवार का संदर्भ यहाँ निकट के बंधु बांधवों से लेकर सृष्टि के विस्तार तक के संबंधों की बात है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो बहुत कुछ मर चुकी थी इस देश में, उसे कुछ बातों ने नया जीवन दिया है जिसमें ब्लाग भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है . एक आम आदमी का मंच , उसके विचार उसके अपने ही रूप में . उसकी क्या सोच है , व्यथा है , उपाय भी छुपे हैं उसके गर्भस्थल में .

इन सारी और अन्य बहुत सारी बातों और विचारों का उपयोग इस मानव जीवन को पुष्पित पल्लवित करने में लगाया जा सकता है . विवाद या युद्ध तभी होता है जब सीमा का उल्लंघन होता है . आम आदमी के लिए ये सीमाएँ असीम हैं . कभी भी किसी को भी कोई भी बात चोट पहुँचा सकती है . इससे कैसे बचें . दो बातें हो सकती हैं  पहली ऐसी कोई बात न कहें जो खुद को भी किसी और  के द्वारा कहे जाने पर अच्छी न लगे और दूसरी अपनी बात रखें स्वान्तः सुखाय के लिये .

हास परिहास और व्यंग भी आवश्यक हैं . बल्कि अगर यह एक नियत दिशा में सीमित रहें तो बहुत अच्छे गुण हैं विकास और उल्लास के .

कुछ विचार आते गए और की बोर्ड पर चलते गए .
पता नहीं तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे :)

17 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

sahi kaha sir is maadhyam ka sadupyog bahut avashyak hai

पंकज मिश्रा ने कहा…

अच्छी चर्चा।
http://udbhavna.blogspot.com/

पंकज मिश्रा ने कहा…

अच्छी चर्चा।
http://udbhavna.blogspot.com/

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

सफेदी के बारे में तो हमको भी नहीं ...पता .....लेकिन इस उधेड़बुन में कुछ अपने विचारों को भी जुड़ा पाता हूँ |

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

सफेदी के बारे में तो हमको भी नहीं ...पता .....लेकिन इस उधेड़बुन में कुछ अपने विचारों को भी जुड़ा पाता हूँ |

Udan Tashtari ने कहा…

विचारणिय बात तो है.

राज भाटिय़ा ने कहा…

काश लोग कुछ लिखने से पहले, बोलने से पहले ऎसा सोचे..... बहुत सुंदर ओर विचारनिया बार कही.
धन्यवाद

Vinashaay sharma ने कहा…

सहमत हूँ, उड़न तशतरी जी से ।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो बहुत कुछ मर चुकी थी इस देश में, उसे कुछ बातों ने नया जीवन दिया है जिसमें ब्लाग भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है ।

सही अवलोकन । सहमत।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच ही है ।

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

हमहूँ टीपें का !!
ही ही ही

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ है.....
चाय-वाय मंगवाइये !!!!
हा हा हा
(अदरक डलवा दीजियेगा...ठंडा पानी पीके थोडा गला खराब है.)

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

क्या हुआ चाय अभी तक आई नहीं !!

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

अरे अदरक लेने महल्ले के बाहर, नौकरवा चला गया का !!

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

अरे अदरक छोडिये, ऐसे ही चाय पिल्वाइये.
सोंच (सोच नहीं पर वही मतलब है) रहे हैं कि आज आपका ब्लॉग फोड़-फाड़ डाला जाय.
हा हा हा

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

टिप्पणियाँ एक-एक करके आ रही हैं, मतलब नौकरवा चल चुका है !!!
यही सोच कर डॉक्टर खुद को बहला रहा है|
वो अब चल चुका है, वो अब आ रहा है !!

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

वैसे ब्लॉग फोड़ने का कोई अनुभव तो है नहीं पर कोशिश करने में हर्ज कैसी !!
पकौड़े तले जायेंगे क्या !!
छोडिये भी...हमको तो तला-भुना मना है.
अच्छा बैंगन तो दिख रहा है किचन में !!!
आज इसी का पकौड़ा बनवाइए :-)