इस देश में और हिन्दी वालों में बहुत सहिष्णुता है यह तो ब्लाग जगत ने जाहिर कर दिया है.
लोगों की भी गलती नहीं है . जिस देश में संघर्ष ही जीवन हो ज्यादातर लोगों के लिए वहाँ और क्या अपेक्षा की जा सकती है किसी भी साधन या मंच के उपलब्ध होने पर .
अकेला होना और उसे स्वीकार करना एक परम सत्य है . परीक्षा इसी बात की है की कैसे इस भाव को जीवित रखते हुए परिवार और परिवार में जिया जाए . परिवार का संदर्भ यहाँ निकट के बंधु बांधवों से लेकर सृष्टि के विस्तार तक के संबंधों की बात है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो बहुत कुछ मर चुकी थी इस देश में, उसे कुछ बातों ने नया जीवन दिया है जिसमें ब्लाग भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है . एक आम आदमी का मंच , उसके विचार उसके अपने ही रूप में . उसकी क्या सोच है , व्यथा है , उपाय भी छुपे हैं उसके गर्भस्थल में .
इन सारी और अन्य बहुत सारी बातों और विचारों का उपयोग इस मानव जीवन को पुष्पित पल्लवित करने में लगाया जा सकता है . विवाद या युद्ध तभी होता है जब सीमा का उल्लंघन होता है . आम आदमी के लिए ये सीमाएँ असीम हैं . कभी भी किसी को भी कोई भी बात चोट पहुँचा सकती है . इससे कैसे बचें . दो बातें हो सकती हैं पहली ऐसी कोई बात न कहें जो खुद को भी किसी और के द्वारा कहे जाने पर अच्छी न लगे और दूसरी अपनी बात रखें स्वान्तः सुखाय के लिये .
हास परिहास और व्यंग भी आवश्यक हैं . बल्कि अगर यह एक नियत दिशा में सीमित रहें तो बहुत अच्छे गुण हैं विकास और उल्लास के .
कुछ विचार आते गए और की बोर्ड पर चलते गए .
पता नहीं तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे :)
17 टिप्पणियां:
sahi kaha sir is maadhyam ka sadupyog bahut avashyak hai
अच्छी चर्चा।
http://udbhavna.blogspot.com/
अच्छी चर्चा।
http://udbhavna.blogspot.com/
सफेदी के बारे में तो हमको भी नहीं ...पता .....लेकिन इस उधेड़बुन में कुछ अपने विचारों को भी जुड़ा पाता हूँ |
सफेदी के बारे में तो हमको भी नहीं ...पता .....लेकिन इस उधेड़बुन में कुछ अपने विचारों को भी जुड़ा पाता हूँ |
विचारणिय बात तो है.
काश लोग कुछ लिखने से पहले, बोलने से पहले ऎसा सोचे..... बहुत सुंदर ओर विचारनिया बार कही.
धन्यवाद
सहमत हूँ, उड़न तशतरी जी से ।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो बहुत कुछ मर चुकी थी इस देश में, उसे कुछ बातों ने नया जीवन दिया है जिसमें ब्लाग भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है ।
सही अवलोकन । सहमत।
सच ही है ।
हमहूँ टीपें का !!
ही ही ही
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ है.....
चाय-वाय मंगवाइये !!!!
हा हा हा
(अदरक डलवा दीजियेगा...ठंडा पानी पीके थोडा गला खराब है.)
क्या हुआ चाय अभी तक आई नहीं !!
अरे अदरक लेने महल्ले के बाहर, नौकरवा चला गया का !!
अरे अदरक छोडिये, ऐसे ही चाय पिल्वाइये.
सोंच (सोच नहीं पर वही मतलब है) रहे हैं कि आज आपका ब्लॉग फोड़-फाड़ डाला जाय.
हा हा हा
टिप्पणियाँ एक-एक करके आ रही हैं, मतलब नौकरवा चल चुका है !!!
यही सोच कर डॉक्टर खुद को बहला रहा है|
वो अब चल चुका है, वो अब आ रहा है !!
वैसे ब्लॉग फोड़ने का कोई अनुभव तो है नहीं पर कोशिश करने में हर्ज कैसी !!
पकौड़े तले जायेंगे क्या !!
छोडिये भी...हमको तो तला-भुना मना है.
अच्छा बैंगन तो दिख रहा है किचन में !!!
आज इसी का पकौड़ा बनवाइए :-)
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