बुधवार, 5 अगस्त 2009

अथश्री कथा ब्लॉग जगत

पता नहीं मेरा यह विषय सही लिखा है या नहीं . संस्कृत के जानकार सही करें . कुछ ही समय में इस अंतरजाल के कई आयाम देखने मिले . अंतरजाल भी एक नया शब्द जानने को मिला . कई शब्दों को तो मैं अपनी वर्णमाला में शायद अभी भी सम्मिलित नहीं कर पाया हूँ जैसे टिपियाना इत्यादि जोकि इस नयी दुनिया कि ही उपलब्धि हैं . कई सालों पहले मैंने ब्लॉगर में अपनी जगह तो बुक करा ली थी लेकिन भूल ही गया था इस बारे में . कुछ महीने पहले अनिल से मुलाकात हुई डॉ अजय सक्सेना के क्लीनिक में . हम नाम से तो एक दुसरे को वर्षों से जानते थे लेकिन प्रत्यक्ष कभी मुलाकात नहीं हुई थी और ये हाल है एक शायद तीसरे दर्जे के शहर का . महानगरों की बात तो छोड़ ही दी जाये छोटे शहरों में भी लोग लम्बे समय तक नहीं मिल पाते . कल ही एक पुराने मित्र से ऑपरेशन थिएटर में और उसके बाद कमरे में भी मुलाकात हुई . हमने कई वर्षों तक शामें साथ गुजारी थी . आज कई महीनो बात मुलाकात होती है . इस मुलाक़ात की भी ये खासियत थी शब्दों का आदान प्रदान बहुत कम होता था जबकि मित्र वाचाल और मैं कम बोलने वालों में से गिना जाता रहा हूँ . मेरे साथ वो भी बहुत कम बोलता था . समय और काल के साथ मित्र कि व्यस्तता बढ़ गयी साथ ही पहले तो उसके इलाके में भीड़ बढ़ गयी और फिर उसने अपना निवास भी बदल दिया . हर व्यक्ति अपने जीवन में एक इन्द्रधनुषी जाल से गुजरता है रंग उसके अलग अलग हो सकते हैं . इससे पहले इतना टाइप भी नहीं करना पड़ता था वो भी लिप्यान्तरण के द्वारा :)
जो भी यहाँ तक पढ़ते हुए पहुंचे हैं सोच रहे होंगे क्या बोर कर रहा है , पता नहीं क्या कहना चाहता है . किसके पास वक़्त है इतनी लम्बी पढ़े और उसपर अपनी टिप्पणी दे . तो सभी ब्लागरों और ब्लोग्गेर्यिओं आप सब से एक ही अनुरोध है कि gender bias छोड़ कर इस अंतर्जाल में विचरण करें अपने को एक स्वानतः सुखाय के स्तिथि में रखने के लिए न कि इसे भी एक रण क्षेत्र बना दें .

1 टिप्पणी:

Sanjeet Tripathi ने कहा…

ye aapki ek behtarin post me se ek hain, no doubt ekdam sahi bat.....