गुरुवार, 6 अगस्त 2009

मैंने तो अपना सिन्दूर बाँट लिया !!!

सारे शहर में होर्डिंग लगे हैं जो चीख चीख कर ये कह रहे हैं . आगे लिखा है - लेकिन मैं अपना पत्नी धर्म निभाऊंगी . वाह क्या बात है . ब्लॉगर आप भी कुछ ऐसा ही लिखें अपना टीआरपी बढ़ाने के लिए . एक ओर हमारे सीरियल कानून की धज्जियाँ उडा रहे हैं वहीँ दूसरी ओर बड़े बड़े लोगों को समलैंगिक लोगों की चिंता समां रही है . विधि मंत्री बोलते हैं उच्च न्यायालय ने एक उचित मुद्दा उठाया है . साथ ही वो ये भी कहते हैं कि कई कानून अभी भी देश में अंग्रेजों के ज़माने से चल रहे हैं जो हमारे संविधान से मेल नहीं खाते . चलिए किसीं ने तो ये स्वीकार किया उच्च स्तर पर . आगे मंत्री जी कहते हैं संविधान में निजता का सिद्धांत है जो इस धारा से मेल नहीं खाता. मंत्री जी सामान्य लैंगिक संबंधों के कानून के बारे में आपका क्या विचार है . एक धर्मनिरपेक्ष देश में आपने अलग अलग धर्मों के कानून क्यों बना रखे हैं . यहाँ तक कि विवाह के भी कानून हैं . आगे बढ़ते हुए ये भी कहा जा रहा है कि चाँद मोहम्मद जैसे लोगों पर भी रोक लगनी चाहिए . यानि अगर चाँद किसी समलैंगिक सम्बन्ध में पड़ते हैं तो उन्हें छोड़ देना चाहिए लेकिन अगर जुआं खेलते या किसी और स्त्री के साथ मिलते हैं तो जेल में डाल देना चाहिए . गोवा में आप जुआं खेल सकते हैं बाकी देश में नहीं . शेयर और कमोडिटी में जुआं जायज है लेकिन तास पट्टी में नाजायज . कानून के जानकार ज्यादा प्रकाश डाल सकते हैं इस बारे में .

5 टिप्‍पणियां:

PN Subramanian ने कहा…

चलिए इन विसंगतियों में भी कही संगत ढूँढने का प्रयास करें. आपसे हम भी सहमत हैं.

Udan Tashtari ने कहा…

इन्तजार करते है कानूनविदों के आगमन का..

Meenu Khare ने कहा…

आपसे हम भी सहमत हैं.

Anil Pusadkar ने कहा…

गरीब को सज़ा अमीर को ज़मानत का मज़ा!कानून का डंडा सिर्फ़ फ़ूटी तक़दीर वालो के लिये है।सही मुद्दा उठाया आपने।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

अंततः व्यक्तिगत कानूनों की सत्ता तो समाप्त होनी ही है। पूंजीवाद सब के लिए समानता का फरमान ले कर आया था लेकिन स्वयं अपनी विसंगतियों में उलझ कर रह गया। अब उसे खुद के डहने का खतरा समानता के फरमान से पैदा हो चुका था। वह क्या करता? उस ने फिर से वही धर्मों की शरण ले ली। अब वही व्यक्तिगत कानूनों का संरक्षण कर रहा है। जनता को बांटे रखने में उस का जीवन है और जनता के एक हो जाने में उस की मृत्यु। वही इन सब को बचा कर रखे हुए हैं। पर कब तक? व्यक्तिगत कानूनों का समाप्त होना अवश्यंभावी है। बस जनता के इस धार्मिक कवच से बाहर निकल कर सचेतन होने की आवश्यकता है।