शनिवार, 22 अगस्त 2009

इंसान से अच्छे तो कुत्ते ही हैं शायद इसमें कोई विवाद नहीं होगा

मैं यहाँ क्षमा याचना करता हूँ स्वान श्रेणी से उनकी इंसान से तुलना करने के लिए .
लोगों ने क्या मुहावरा बन रखा है कुत्ते की मौत मरना. कभी कोई नहीं कहता इंसानों की मौत मरना . क्योंकि आजकल कोई भी स्वाभाविक मौत नहीं मरना चाहता या उसके रिश्तेदार नहीं मरने देते . मृत्यु और बीमारी भी अब एक status symbol बन गया है अगर आप बीमार हैं तो कहीं भरती हैं या अधोगति को प्राप्त हुए तो कहाँ से प्रस्थान हुआ ये आज यह अत्यावश्यक है नहीं तो आपका समाज में स्तर कम हो जायेगा .
कुत्ते की मौत मरना याने असम्भावित दुर्दांत रूप से मरना होता था . आजकल कि व्यवस्था में यह सामान्य प्रक्रिया हो गयी है इंसान के लिए .
दो दिनों के लिए युवराज इस देश के हमारे राज्य में हैं उन्हें इतने जल्दी ही पता चल गया कि राज्य सरकार अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुँच पा रही है और भ्रस्ताचार हो रहा है . उन्हें ये कौन बताएगा कि ३० साल से उनकी पार्टी ने ही ये पहुँच बंद कर रखी थी . और ये उनके पिता के समय भी नहीं पहुँच रही थी .

उधर दूसरी बड़ी पार्टी में चिंतन चल रहा है ? बड़ा अच्छा शब्द है लेकिन यथार्थ से कोसूं दूर

इस देश में अगर जनता जाग भी गयी तो आज कौन है नेत्रुत्व्या प्रदान करने के लिए ?

2 टिप्‍पणियां:

vikram7 ने कहा…

उधर दूसरी बड़ी पार्टी में चिंतन चल रहा है ? बड़ा अच्छा शब्द है लेकिन यथार्थ से कोसूं दूर
सही लिखा हॆ,आपने

Neeraj Gupta ने कहा…

aap ne kuch hadd tak sahi likha hai