मनीषियों से निवेदन है ये सुश्री शब्द कहाँ से आया और सुश्री है तो सुश्रा कहाँ है. कुछ समय से यह शब्द खटक रहा था . नारियां ध्यान दे ये भी एक जेण्डर बाईस है .
इसके जवाब का दाइत्व ब्लागजगत मे भाई अजीत वडनेरकर जी के लिये सुरक्षित रखा जाय.
जिस प्रकार से श्री, श्रीमान, श्रीमती शब्द मे सम्मान का भाव अंतर्निहित होता है उसी प्रकार से कुमारी महिलाओ को सम्मान देने के उद्देश से सुश्री शब्द का प्रयोग हो रहा है, ज्यादातर इसका प्रयोग राजनीति के मंचों में सुनने को मिलता है मेरे ख्याल से इस शव्द का उद्घाटक मंच राजनीति का ही है.
भारतीय संस्कृति में नारी का सम्मान तो निर्विवाद है ही, परन्तु सधवा और गृहस्थ होना ही उसे 'गृहलक्ष्मी' कहलवाता है। अत: स्त्री, जो विवाहित - गृहस्थ अवस्था में न हो, उसके लिए सम्मानसूचक शब्द है 'सुश्री'। इस भाव के ही कारण यह अंग्रेज़ी के "मिस" के अनुवाद या समानार्थक रूप में भी प्रयुक्त होता है। 'श्री' शब्द की इन सभी संबोधनों में उपस्थिति है, जो लक्ष्मी, कीर्ति, यश, ऐश्वर्य आदि के सूचक और समानार्थक के रूप में प्रयुक्त है। भारतीय समाज में ऐसा था कि स्त्री की 'श्री', उसके पति से ही होती थी। अब ज़माना बदला और स्त्री स्वयं भी 'श्री' अर्जन में समर्थ हो गयी, मगर श्रीमती का रूढ़ अर्थ था जो केवल विवाहिता और सधवा स्त्री के ही अर्थ में था, तो इस सुश्री शब्द का प्रचलन सोच-समझ कर बढ़ा। यह हिन्दी की समृद्धि, विशिष्टता और हमारी रूढ़ियों को एक साथ दिखाता हुआ शब्द है। मैंने एक विषय चु्ना था 'अभिव्यक्ति', कुछ लिखा भी था उस पर। शीघ्र ही पहली कड़ी पोस्ट करने का प्रयास करूँगा, शायद भाषा और अभिव्यक्ति में रुचि रखने वालों को पसन्द आए।
6 टिप्पणियां:
Sahi baat hai
महेश जी, हमारी जानकारी तो श्री, श्रीमान, श्रीमती और कुमारी शब्दों तक ही सीमित है, पता नहीं ये सुश्री कब और कहाँ से आ गया।
महेश जी जब प्रश्न आपने उठाया है तो हल भी आप ही निकालिए ......वैसे प्रश्न है मजेदार ......!!
सिन्हा साहब, हम तो कन्फ्यूजिया गए हैं, सुश्रा शब्द से।
इसके जवाब का दाइत्व ब्लागजगत मे भाई अजीत वडनेरकर जी के लिये सुरक्षित रखा जाय.
जिस प्रकार से श्री, श्रीमान, श्रीमती शब्द मे सम्मान का भाव अंतर्निहित होता है उसी प्रकार से कुमारी महिलाओ को सम्मान देने के उद्देश से सुश्री शब्द का प्रयोग हो रहा है, ज्यादातर इसका प्रयोग राजनीति के मंचों में सुनने को मिलता है मेरे ख्याल से इस शव्द का उद्घाटक मंच राजनीति का ही है.
भारतीय संस्कृति में नारी का सम्मान तो निर्विवाद है ही, परन्तु सधवा और गृहस्थ होना ही उसे 'गृहलक्ष्मी' कहलवाता है। अत: स्त्री, जो विवाहित - गृहस्थ अवस्था में न हो, उसके लिए सम्मानसूचक शब्द है 'सुश्री'। इस भाव के ही कारण यह अंग्रेज़ी के "मिस" के अनुवाद या समानार्थक रूप में भी प्रयुक्त होता है।
'श्री' शब्द की इन सभी संबोधनों में उपस्थिति है, जो लक्ष्मी, कीर्ति, यश, ऐश्वर्य आदि के सूचक और समानार्थक के रूप में प्रयुक्त है।
भारतीय समाज में ऐसा था कि स्त्री की 'श्री', उसके पति से ही होती थी। अब ज़माना बदला और स्त्री स्वयं भी 'श्री' अर्जन में समर्थ हो गयी, मगर श्रीमती का रूढ़ अर्थ था जो केवल विवाहिता और सधवा स्त्री के ही अर्थ में था, तो इस सुश्री शब्द का प्रचलन सोच-समझ कर बढ़ा।
यह हिन्दी की समृद्धि, विशिष्टता और हमारी रूढ़ियों को एक साथ दिखाता हुआ शब्द है।
मैंने एक विषय चु्ना था 'अभिव्यक्ति', कुछ लिखा भी था उस पर। शीघ्र ही पहली कड़ी पोस्ट करने का प्रयास करूँगा, शायद भाषा और अभिव्यक्ति में रुचि रखने वालों को पसन्द आए।
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