गुरुवार, 27 अगस्त 2009

इसे क्या कहेंगे भाग्य की अनबूझी पहेली या कर्म का फल


आजतक ऐसा कथा कहानियों में ही सुना था लेकिन जब यथार्थ  में ऐसा होते देखा तो सब कुछ हिल गया . समझ नहीं आ रहा है कैसे और क्या लिखा जाये .
काफी समय से मन उद्धेव्लित था कि ऐसा क्या हुआ की एक अच्छे खासे इन्सान ने अपनी जीवन  लीला समाप्त कर दी . वह इन्सान जो हर किसी की सहायता को तत्पर रहता था . उसके सामने कोई विभेद नहीं था एक ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी परम मित्र मुस्लिम थे . यहाँ उसके व्यापक दृष्टिकोण को देखें न की धार्मिक सम्बन्ध को . हर कोई उसके मधुर शब्दों के लिए लालायित रहता था भले हे उनमे कुछ गालियाँ भी जुडी हों . सबका दुलारा और २४ घंटे सहायता के लिए तत्पर . अभी तक यह एक पहेली है कि उसने ऐसा क्यों किया . दबंग किसी से झुकना नही सीखा साथ ही साथ बड़ों के लिए पूरा मान सम्मान . घटनाक्रम प्रारंभ हुआ एक साल पहले याने २००८ की होली के दिन मैं ट्रेन में था कि मोबाइल की घंटी बजी , एक सहयोगी का फ़ोन था कि तुंरत अस्पताल पहुंचें . मैंने पुछा क्या हुआ , सर का एक्सीडेंट हो गया है और सीरियस हैं . मैंने बताया कि मैं शहर से बाहर हूँ और आप लोग तुंरत पहुँचो . 
मुझे समझ नहीं आया कि क्या करुँ कोई आसपास भी नहीं था कि वापस भी  आ सकूं . मैंने  अपनी प्रार्थना  की कि सब  कुछ कुशल मंगल हो . रस्ते में नेटवर्क  जुड़ता टूटा रहा . शाम को पता चला कि चोट थोडी ज्यादा है और अस्पताल में भरती रहना होगा लेकिन सब कुछ स्थिर है .
इसके बाद उसे कुछ समय अस्पताल में रहना पड़ा और एक ऑपरेशन के लिए बॉम्बे जाना पड़ा . सब कुछ  ठीक था कि शाम को फ़ोन आया कि भाई नहीं रहा कुछ समझ नही  आया . चरों ओर से लोग दौडे कि क्या हुए लेकिन तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था आत्मा शरीर छोड़ चुकी थी .
किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन जैसी कि एक प्रक्रिया है उसके अनुसार सब क्रिया करम किया गया .

इस दौरान पता चला कि मित्र में बड़े भैया भी अस्वस्थ है . उनका तो परिवार  भी टूट चुका है ४० साल के वैवाहिक बंधन के बाद . ऐसा बहुत कम होता है इस उम्र में . बड़े भैया एक बड़ी सरकरी कंपनी में अच्छी पोस्ट में थे लेकिन जब से उनने वोह नौकरी  छोड़ी और रायपुर रहने आ गए उनका भाग्य पलट गया .
आपको लग रहा होगा एक विज्ञानं से सम्बंधित व्यक्ति ये सब क्या कह रहा  है लेकिन ये सब बिलकुल सत्य है\

फिल्मों में ही देखा था कैसे उतार चढाव  होते हैं पहली बार जिंदगी में देखा .
दो दिन पहेले पता चला बड़े भाई का देहावसान हो गया है एक अस्पताल में और कोई शरीर को लेने वाला नहीं है . जबकि पत्नी जो विवाद में है पुत्र , पुत्री . लगभग सारा परिवार अस्तित्वा मैं है . इससे बड़ी विडम्बना शायद ही कोई जीवन में हो सकती है
excuse me for typos   


पूरा ये घटनाक्रम आपके सामने है आप फैसला करें क्या यह कर्म है या भाग्य है 

6 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

हम विचारों से कितना भी आधुनिक होने का दावा करें .. समाज के सुख दुख को देखते हुए भाग्‍य को मानना हमारी मजबूरी है !!

राज भाटिय़ा ने कहा…

इसे तो कर्मो का फ़ल ही कहेगे... क्योकि हम जो दिखते है वेसे नही होते, ओर जो होते है वो हम दिखते नही.... लेकिन भगवान तो सब देखता है.

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

@ राज जी दरअसल हिन्दू संस्कृति पुर्नजन्म को मानती है और हमें अपने पूर्व जन्म के बारे में पता नहीं होता है . कुछ विधियां हैं जिनसे इनका पता लगाया जा सकता है . बौध धर्मं में इस पर काफी काम हुआ है . एक महत्वपूर्ण पुस्तक है " Life after death "

Arshia Ali ने कहा…

Behad dukhad.
( Treasurer-S. T. )

शरद कोकास ने कहा…

यह भाग्य या कर्म दोनो का मामला नही है डॉ.साहब ऐसी घटनायें तो घटित होती रहती है । आप तो चिकित्सक है आपका कुछ तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण होगा ?

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

@ शरद जी क्या विज्ञानं हर चीज को समझ पाया है . मैं एक चिकित्सक हूँ लेकिन मेरा मानना है हर बात को वैज्ञानिक सन्दर्भ में नहीं रखा जा सकता है . विज्ञानं दरअसल है क्या ? ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों की खोज और ये अनवरत चलती रहती है क्योंकि जिस दिन विज्ञानं ने सब जान लिया विज्ञानं ख़त्म हो जायेगा . इन शक्तियों की खोज हमारे ऋषि मुनियों ने कब से कर रखी थी लेकिन इस ज्ञान को उनने दुरुपोग होने से बचाने के लिया आगे नहीं बढाया . भारतीय धर्म में कर्म और भाग्य दोनों को स्थान दिया गया है और पुनर्जन्म को भी, विज्ञानं इस भाषा के समझने में अभी सक्षम नहीं है . एक वस्तु को एक स्थान से दुसरे स्थान में परावर्तित करने को एक कपोल कल्पना माना जाता रहा है कि व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान अपनी शक्ति से जा सकता है. आज विज्ञानं ने एक सूक्ष्म प्रयोग से इसे सिद्ध करने में सफलता पाई है