कहाँ हैं तथाकथित मानवाधिकारवादी जो नक्सलियों के समर्थन में सरकार का विरोध करते थे
कल दंतेवाडा में हजारों आदिवासियों ने नक्सलवाद और एक NGO वनवासी चेतना आश्रम और उसके संचालक हिमांशु कुमार जो देश ही नहीं विदेशों में भी आदिवासियों के नाम से अपनी दुकान चला रहे थे के विरोध में जुलुस निकाला पूरा समाचार यहाँ पढ़ें
आज का समाचार पत्र भी नक्सली समाचारों से भरा पड़ा है
नेपाल में भी अब इनकी कारगुजारी का राज खुलने लगा है .
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सौजन्य : दैनिक नवभारत रायपुर
10 टिप्पणियां:
फिल्म 'ग्रीन हंट' है जी ट्रेलर अभी छप रहा है पेपरों में किन्तु दूसरे कतरन में यह लिखा है कि अत्याधुनिक हथियार मिले पर फोटू तो वही मंगल पाण्डे के जमाने के बंदूंकों का है. चलो जो भी हो, जब पूरा 'फिलिम को ढिला' जायेगा तब तक तो टरेलर का आनंद ले लेते हैं.
बढिया जानकारी-आभार
सही है जी.
तथाकथित मानवाधिकारवादी ... इनकी दुकान तो बस साकार का विरोध कर के ही चलती है ...........
डॉक्टर साहब,
आदिवासियों का यही तो दर्द है...इनका न तो कोई नेता है, और न ही इनकी आवाज़ दिल्ली तक पहुंचती है...विकास किस चिड़िया का नाम होता है, इनके इलाके नहीं जानते...हां, न्याय दिलाने के नाम पर नक्सली ज़रूर इन तक पहुंच बना लेते हैं...और इसी चक्कर में डबल क्रास करने वालों ने भी अपनी दुकानें जमा ली हैं...लेकिन गोली चलती है तो सबसे पहले ये आदिवासी ही शिकार होते हैं...
जय हिंद...
पहले मानवाधिकार आयोग को रद्द करना चाहिए। बात-बे-बात फ़ेक एन्काऊंटर की रट लगाए रहते हैं॥
ये अत्याधुनिक हथियार हैं? हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
ये हंसी बताती है कि हथियार दिखाई नहीं देते !
@ खुशदीप जी
आप तो मीडिया से हैं . आदिवासियों की व्यथा यही है कि राष्ट्रीय मीडिया में इन्हें जगह नहीं मिलती
जैसी की खबर है यह रैली आदिवसियों ने निकाली थी लगभग ३ किलोमीटर लम्बा जुलुस था .
कुछ झुनझुने भी बजने लगे हैं बेनामी के रूप में
बेनामी हंसी में रक्ष संस्कृति की खनक है! रावण के युग की पहचान रही है यह!
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