शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

आतंकवाद और राजनीति

आजकल राजनेताओं में बहस छिडी है कि आतंकवाद का मुकाबला हम ज्यादा अच्छे से कर सकते हैं । इनको अभी तक क्या किसी ने रोक रखा था ? इतने गंभीर विषय को एक चुनावी मुद्दा बनाना क्या उचित है ? आज ये आतंकवाद देश को अन्दर और बाहर दोनों ओर से विकराल रूप से घेरे हुआ खड़ा है और ये अपनी रोटी सेकने में लगे हैं ।
आतंरिक आतंकवाद को तो पहले ये सरकार नकारती रही , पूर्व गृहमंत्री का तो ये बयान था कि नक्सलवाद कोई समस्या नही है , वर्त्तमान गृहमंत्री ने न जाने किस आधार पर वाम दलों को clean chit दे दी कि इनका कोई सम्बन्ध इनसे नही है , तो फिर ये क्यों इनका अपरोक्ष समर्थन करते हैं ?
छत्तीसगढ़ में माओवाद के आगमन और विस्तार के लिए कौन जिम्मेदार है ? इतिहास में जाएँ तो सब पता चल जायेगा । नक्सलवाद के प्रणेता कनु सान्याल ने तो इसका हश्र देखकर ख़ुद इससे किनारा कर लिया ।
चुनाव से कुछ समय पूर्व एक ट्रक भरा असला पकडाया छत्तीसगढ़ में , ये किस बात कि तय्यारी थी ?
मतदान के पहले और दौरान खून बहता रहा शायद इसकी ख़बर दिल्ली तक नही पहुँचती ।
BSF के अधिकारी ने तो स्पष्ट कहा है कि इसे रोक पाना राज्य सरकारों की क्षमता के बाहर है ।
हमारी सरकारें पाकिस्तान को कहते रहती हैं कि वो अपने देश में आतंकवादियों को समाप्त करें , पहले आप अपने देश में तो ऐसा कर दिखाएं , किसका इन्तेजार कर रहे हैं कि कब पानी सर के ऊपर से गुजर जाए ।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की जेल में एक व्यक्ति विचारधीन कैदी के रूप में बंद है , देशद्रोह के आरोप में , कहा जाता है है के ये एक बहुत बड़े समाजसेवी चिकित्सक है , जिन्हें इस राज्य में शायद ही कोई चिकित्सक जानता है । इनके समर्थन में देश विदेश के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं । इससे इनकी पहुँच का अंदाजा हो सकता है । जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने भी जमानत देने से इंकार कर दिया उनके समर्थन में ख्याति प्राप्त लोग राज्य सरकार के खिलाफ खुला आन्दोलन चला रहे हैं । मुझे क्षमा करें किंतु या तो ये लोग किसी प्रभाव में ऐसा कर रहे हैं या इन्हे पता नही ये क्या कर रहे हैं।
मीडिया को भी कैसे दिग्भ्रमित किया जा सकता है इसका ये भी एक उदाहरण है । पूरे देश और विदेशों में नक्सली हिंसा के बारे में उतना नही छपता जितना इन्हे छुडाने के बारे में। कोई पूछे दो दर्जन नोबल पुरस्कार विजेता इन्हे कैसे जानते हैं ? जो अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार इन्हे दिया गया है , जिसे नोबल के बराबर बताया जा रहा है उसकी असलियत क्या है ? नामधारी मानवाधिकार संगठन इनको छुडाने के लिए आन्दोलन कर रहे हैं उनके लिंक क्या हैं . ये देश की आतंरिक सुरक्षा का विषय है ।
कुछ इन सज्जन के बारे में जो जानकारी मुझे मिली - इन्हों ने च्रिस्तियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर से अध्ययन किया है , ये वहाँ काफी नाम रखते हैं। वहाँ एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में जोकि एक चिकीत्सा से सम्बंधित सम्मलेन था में इनकी तारीफ़ के पुल बंधे जाते हैं और छत्तीसगढ़ सरकार को गरियाया जाता है ।

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