चुनाव आयोग प्रजातंत्र के पांचवे स्तम्भ के रूप में इस देश में स्थापित हो गया है । अच्छा है जितने स्तम्भ होंगे उतना आधार मजबूत होगा । पर प्रजातंत्र और प्रजा का क्या होगा ? संहिता लागू होते ही सारे सरकारी दफ्तरों में काम बंद , अघोषित छुट्टी , बहाना चुनाव कार्य में व्यस्त यानी भ्रस्टाचार प्रीमियम रेट पर ।
आम आदमी को तो इसका कहीं कोई प्रभाव नेताओं या पार्टियों पर नही दिखाई देता, हर मामले को निपटने के लिए कब तक सुप्रीम कोर्ट जाते रहेंगे, अगर ऐसा ही है तो सब कोर्ट बंद करके सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट चलाया जाए ।
नेता बड़े चालाक होते हैं उन्होंने ऎटम बम को सुर्री बम बना के रख दिया है , बेचारी जनता करे भी तो क्या करे, अब तो खुले मंच से धमकी चमकी भी हो रही है । जनता को समझ कर एक मजबूत सरकार बनानी होगी वरना पिछले दो सत्रों जैसा हाल होगा, बड़ी पार्टियाँ छोटी पार्टियों को तेल लगा रही होंगी और छोटी पार्टियाँ मक्खन खा रही होंगी । हम एक भाग्यवादी देश के निवासी हैं सो हमें अपना भाग्य अपने हाथों नही बिगाड़ना चाहिए
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें