मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

श्रीलंका आतंकवाद और हम

श्रीलंका की सेना बधाई की पात्र है की उसने बहुत सारे बंधकों को छुडा लिया और अपनी अन्तिम विजय की और अग्रसर है । हर देश को ये अधिकार है की वो अपनी संप्रभुता की रक्षा कर सके और शान्ति और व्यवस्था बनाये रख सके। सरकार का धर्म ही है की वो अपने नागरिकों की रक्षा कर सके ।
हमारे देश की सरकार कब जागेगी ? कब जब ये तथाकथित नक्सलवादी संसद की देहलीज तक पहुँच जायेंगे । कुछ दिन पहले थलसेना अध्यक्ष अपनी यात्रा बिना पूरी किए छत्तीसगढ़ से चले गए । एक अखबार में एक टी वी चैनल के संदर्भ से उनका बयान आया है कि नक्सलवाद सामाजिक आर्थिक समस्या है उसके लिए सेना की आवश्यकता नही है ! न जाने किसने जनरल की ब्रीफिंग की है ? चुनाव के पहले चरण में ही १७ सुरक्षा कर्मी शहीद हो गए हैं । छत्तीसगढ़ में नियुक्त BSF के अधिकारी का कुछ दिनों पहले ही बयान आया था कि ये समस्या पुलिस के बस की नहीं है । क्योंकि इससे लड़ने के लिए न उनके पास ट्रेनिंग है न ही हथियार । देश की सुरक्षा की चिंता करने वाले नेता कब जागेंगे और ये पता लगायेंगे कि इन्हे रसद पानी कहां से मिल रहा है जिससे इनके पास रॉकेट और ग्रेनेड लौंचेर जैसे हथियार पहुँच गए जो टीवी पर तालिबानी लिए घूमते हैं ?

3 टिप्‍पणियां:

अनुनाद सिंह ने कहा…

सेना सहित सरकार के अन्य सभी विभाग व अवयव, अनिर्णय के लकवा से पीड़ित हैं। इनको बस एक काम के लिये उपयोग मेंलाया जा रहा है - एक पार्टी के राजनीतिक हितों की रक्षा के लिये।

Anil Kumar ने कहा…

नक्सलवादी समस्या के आर्थिक और सामाजिक पहलू जरूर हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वहाँ पुलिस और सैनिक कार्रवाई न की जाये। श्रीलंका की मिसाल अद्भुत है। इतने सालों से गृहयुद्ध चलने के बावजूद वहां साक्षरता, स्वास्थ्य और आधारभूत सुविधाओं का विकास भारत से कई गुना तेजी से हुआ है।

संजय बेंगाणी ने कहा…

भूतकाल में तमिलों के साथ श्रीलंका में हुए अन्याय से मुझे सहानुभूति है मगर मैं श्रीलंकन सरकार के कदम की प्रसंशा करता हूँ. भारत कब जागेगा?

दोष सुरक्षाकर्मियों का नहीं नेतागिरी का है...जिन्हे लाल आतंकियों से या तो सहानुभूति है या मजबूरी है. केन्द्र का लचर नैतृत्व कभी कठोर कदम नहीं उठा सकता....